...

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वो दिन
टप टप , बारिश की बूंदें गिर रही है बाहर , खर्र खर्र किसी के खर्राटों की आवाज भी आ रही है अंदर से। जोर जोर की चिल्लाने की आवाज़ें भी आ रही है ,शायद विमल और उसकी पत्नी के बीच झगड़ा चल रहा है
ताई बैठी सब देख रही है और मन ही मन सोच रही है क्या हो गया है सबको हमारा जमाना भी सब मिलकर रहते थे तब भी घर कच्चे होते थे इससे भी बदतर पर सब एक दूसरे कि सहायता करते थे पर ये देखो पति पत्नी कि नहीं बन रही , एक सोया है कब से उसे तो कोई सुध बुध ही नहीं।
तभी विमल चिल्लाता हुआ आया अंदर।
ताई -- क्या हुआ बेटा क्यो चिल्ला रहा है ।
विमल -- क्या करूं ताई चिल्लाऊं नही तो क्या करूं एक लुगाई नहीं सुनती, दूसरा उसका साहबजादा है जो स़ोया पड़ा है अभी तक ।
ताई --- अरे बेटा ये समय ही ऐसा है जहां कोई किसी की नहीं सुनता एक वो दिन भी थे सब मिलकर , हंस घुल कर रहते थे, अब तो कोई एक दूसरे को फुटी कोड़ी नहीं भाता।
विमल --छोडो ताई वो दिन , वो ही थे , सब बदल जाता है धीरे-धीरे ।
तभी आशा आ गई, बाहर से गुस्से से लाल होते हुए।
आशा--आप बस यहां इस बुढ़िया से ही बतयाना , मेरी सहायता नहीं करना पानी बाहर निकालने में रसोई में भी पानी है खाना कैसे बनेगा।
ताई ---बेटा हां हो गई हूं बुढ़ी , वो भी दिन थे जब अकेले घर में घुसा पानी निकाल देती थी
आशा ---बस करो , आप बड़ी आई वो दिनों की बातें याद करने बाली , होते होंगे तब लोग तगड़े , मुझे में नहीं हिम्मत करूं ये काम।
तभी अभी उठ कर आ गया ।
अभी --अरे मां इस बुढ़िया के क्या मुंह लगना ये बस वही वो पुराने दिन लेकर बैठी है।
आशा ---सही है पागल औरत, वो दिन हद है खत्म हो गए अब वो दिन।
फिर सब चले गए पानी निकालने घर से और ताई वो अपने जमाने के दिन याद करके रोती रही।

कहानी समाप्त , जानती हूं , है तो बहुत लघु पर बहुत कुछ कह रही ये कहानी , कहते हैं घाघरा में सागर भरना ये उसी का चरितार्थ है।

स्वरचित कहानी
अंजली