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एक पिता की अरमानो की डोली 🙏😘
बेटी की विदाई

शादी के बाद विदाई का समय था, नेहा अपनी माँ से मिलने के बाद अपने पिता से लिपट कर रो रही थीं। वहाँ मौजूद सब लोगों की आंखें नम थीं। नेहा ने घूँघट निकाला हुआ था, वह अपनी छोटी बहन के साथ सजाई गयी गाड़ी के नज़दीक आ गयी थी। दूल्हा अविनाश अपने खास मित्र विकास के साथ बातें कर रहा था। विकास -‘यार अविनाश. सबसे पहले घर पहुंचते ही होटल अमृतबाग चलकर बढ़िया खाना खाएंगे.

यहाँ तेरी ससुराल में खाने का मज़ा नहीं आया।’ तभी पास में खड़ा अविनाश का छोटा भाई राकेश बोला -‘हा यार..पनीर कुछ ठीक नहीं था.और रस मलाई में रस ही नहीं था।’ और वह ही ही ही कर जोर जोर से हंसने लगा। अविनाश भी पीछे नही रहा -‘अरे हम लोग अमृतबाग चलेंगे, जो खाना है खा लेना… मुझे भी यहाँ खाने में मज़ा नहीं आया..रोटियां भी गर्म नहीं थी.।’ अपने पति के मुँह से यह शब्द सुनते ही नेहा जो घूँघट में गाड़ी में बैठने ही जा रही थी, वापस मुड़ी, गाड़ी की फाटक को जोर से बन्द किया… घूँघट हटा कर अपने पापा के पास पहुंची.।

अपने पापा का हाथ अपने हाथ में लिया..’मैं ससुराल नहीं जा रही पिताजी… मुझे यह शादी मंजूर नहीं।’
यह शब्द उसने इतनी जोर से कहे कि सब लोग हक्के बक्के रह गए…


सब नज़दीक आ गए। नेहा के ससुराल वालों पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा…


मामला क्या था यह किसी की समझ में नहीं आ रहा था। तभी नेहा के ससुर राधेश्यामजी ने आगे बढ़कर नेहा से पूछा — ‘लेकिन बात क्या है बहू ?
शादी हो गयी है ,विदाई का समय है अचानक क्या हुआ कि तुम शादी को नामंजूर कर रही हो ?

अविनाश की तो मानो दुनिया लूटने जा रही थी, वह भी नेहा के पास आ...