...

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#विद्रोही
तुमने कहा !

तुम्हारी दृष्टि में मैं विद्रोही हूँ, क्योंकि मेरे सवाल तुम्हारी मान्यताओं का उलंघन करते है।

श्रीमान,

मान्यता किसी व्यक्ति और समाज की व्यक्तिगत नहीं होती।
मान्यता मानवता की प्रकृति के अनुरूप होती हैं।
मान्यता समाज के जीवन में ग्रहण करने के उपरांत संस्कृति बन जाती हैं।

मानवीय...