...

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निर्णय
रितु को मेंहदी लगाई जा‌रही थी।खूब खुशियां मनाई जा रहीं थीं।
नाच गाना हो रहा था।बारात आ गयी! बारात आ गयी! शोर सा मच गया। हलचल सी मच गयी,चारों ओर। फिर क्या था स्वागत सत्कार होने लगा। बड़े मान सम्मान से सबको चाय ,नाश्ता खाने का प्रबंध किया गया। कितने सारे लोग इस व्यवस्था को संभालने में जाने कितनी देर से लगे थे।ज्यों त्यों
नाश्ते से‌ निपटे। अगवानी हुई,फेरे का वक्त आया।
चाय से सबका फिर से स्वागत किया जा रहा था,पर जैसे"खाना और गुर्राना" वाली कहावत चरितार्थ हो गयी, कुछ कानाफूसी सी हुई, ये क्या चाय बनाई है, पानी जैसी!
ना दूध है ना शक्कर! पहले दूल्हे के फूफाजी भनके। फिर धीरे-धीरे इनके बाद कमियां निकालने बाले बढ़ने ही लग गये जैसे। अंत तक दूल्हे के बाप को भी...