दिल का रिश्ता।(part 1)
आज लान में लगे पौधे फिर से मुस्कुरा रहे थे ।और नीम का पेड़ जो कि एक साल पहले ही इस घर का हिस्सा बना था इस तरह से झूम रहा था जैसे कि मौसम ए बहार आ गई हो।सब खुश थे पत्तियां मुस्कुरा रही थीं तो कलियां खिलखिला रही थीं...और वो खुश भी क्यूं ना हों!
आज इस घर में फिर से वह लौट आई थी जो इनसे बहुत प्यार करती थी।बच्चों की तरह इनका खयाल रखती थी।अपनी हर बात चाहे वो खुशी की ही या गम की वो इन्हीं से तो बांटती थी ,और ये लोग भी कितनी राज़दारी से उसकी बातें सुनते थे।
लेकिन क्यों?
ये सवाल उसने पहले क्यों नहीं किया?क्यों उसको पहले समझ नहीं आया कि ये सिर्फ पेड़ पौधों और इंसान का रिश्ता नहीं था ,ना ही ये सिर्फ लेन देन का रिश्ता था कि उन्होंने अपना साया अपना फल और फूल दिया और बदले में इंसान ने उन्हें पानी और उनकी ज़रूरियात की कुछ और चीज़े उन्हें थमा दी ।...
आज इस घर में फिर से वह लौट आई थी जो इनसे बहुत प्यार करती थी।बच्चों की तरह इनका खयाल रखती थी।अपनी हर बात चाहे वो खुशी की ही या गम की वो इन्हीं से तो बांटती थी ,और ये लोग भी कितनी राज़दारी से उसकी बातें सुनते थे।
लेकिन क्यों?
ये सवाल उसने पहले क्यों नहीं किया?क्यों उसको पहले समझ नहीं आया कि ये सिर्फ पेड़ पौधों और इंसान का रिश्ता नहीं था ,ना ही ये सिर्फ लेन देन का रिश्ता था कि उन्होंने अपना साया अपना फल और फूल दिया और बदले में इंसान ने उन्हें पानी और उनकी ज़रूरियात की कुछ और चीज़े उन्हें थमा दी ।...