माँ
ऐ माँ! तुझे शब्दों में उतार पाऊँ वो शब्द कहाँ से लाऊँ, वो तेरा सुबह सुबह मुझे जगाना, उस वक्त आता था गुस्सा मगर बाद में जाना। तेरी हर डांट के पीछे छिपा होता था मुझे समझाना और एक बेहतर इंसान बनाना। डांटने के बाद ख़ुद ही मुझे गले से लगा लेना। वो तेरा ज़बर्दस्ती मुझे खाना खिलाना, खाएगी नहीं तो जान कहाँ से आएगी। चल जल्दी से ये दूध खतम कर फ़िर पढ़ाई भी तो करनी है,बातें बना बनाकर मुझे दूध पिलाकर ख़ुश हो जाना। ख़ुद के लिए वक्त ना निकालना और पूरा दिन काम में लगे रहना। अब शादी के बाद सोचती हूँ, कैसे कर लेती थी माँ तू ये सब,सबका ख़्याल सबकी देखभाल।तेरे माथे पर शिकन तक ना दिखती थी और तू हर वक्त ख़ुश रहती थी। हाँ पापा से कभी-कभी लड़ पड़ती थी पर उनके मनाने पर झट से मान भी जाया करती थी। अब समझती हूँ सब वो तेरा यूँ ही रूठ जाना ख़ुद को Special feel कराना था। पापा भी सब समझते थे,तुम्हारी तारीफ़ यूँ ही नहीं करते थे। उन्हें भी तो पता होता था कि तुम माँ बाबूजी का कितना ख़्याल रखती हो और सारे घर की ज़िम्मेदारी बखूबी संभाला करती हो।माँ मैं तुम्हें आज भी बहुत याद करती हूँ और सच कहूँ तो मैं बिल्कुल तुम्हारे जैसी बनना चाहती हूँ। love you maa ❤