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एक गृहक का फरिश्ता बन वैशया की का प्रकाश पैगाम।।
लेखक प्रश्नवाचक कैमरा मैन

जब पिता थे,
तो क्या बरगत थी,
मानो सारा बाजार हमारा हो,
वह जब भी कही कही से काम कर आते,
तो कुछ ना कुछ हमारे लिए लाया करते थे,
मानो वो हर रोज एक एक खुशी का तिनका हमारे लिए इकट्ठा किया करते थे,
बस वो हम भाई बहनों से हमेशा यही कहा करते थे -छोटी छोटी मच्छर दानी पैर लंबे ना करना,
और जो किए तो वह मच्छर दानी फट जायेगी,
चलाओ हल बोल धान कटो फसल ,
बस यही है हम जैसो का,
और ऐसे कहते कहते वह चल बसे,
रोती मेहरू नौजवान बिटिया और दस भाई बहनों।
नहीं थी कोई आस,
मां कुमारिन बेटियां जवान एक बूझ ,
चार छोटी बहन और थी,
जिनका घर भी बसना था,
भाईयो को तो कुछ भी रोजमर्रा मिल जाता था,
मगर भाईयों की कमाई से कब तक बसेरा होता,
इसलिए वह जवानिका निकल पड़ी एक आस लगाए कि शायद मैं कोई बसेरा बनाकर कुंभ की स्थापना कर पाऊं।।
जब वो निकली थी क्या किस स्थिति में दिखाई दी।।-प्रशनवाचक ☝️
लेखक प्रश्नवाचक की ओर देखकर कहते हुए -
प्रश्नवाचक निगाहों से निगाहों में देख बोलते हुए!
नंगे पाव,हाथ में मेहंदी फटे चिथड़े कपड़े और कुछ काम मांगने की गुहार लगाती हुई वह घनी
तचती धूप निकल पड़ी एक हकीम की तलाश में थी शायद -प्रशनवाचक।।
लेखक प्रश्नवाचक से वार्तालाप केन्द्र मे एक वैश्य नगरी।।
#केन्द्र
#नाट्य-पात्रो का गंभीर सवाद।।🙏🙏🪔
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