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गट्टे की सब्जी... एक व्यवस्थित लेख..
'सब्जी' जो केवल एक सब्जी ही नहीं होती.. वह होती है.. "एक पूरा लेख"

सुनने में अजीब लगेगा, पर इस विचार की उत्तपत्ति हुई मेरे पतिदेव की खाने की फरमाइश से 😋

हुआ यूं कि बहुत दिनों बाद पतिदेव ने कहा कि "गट्टे की सब्जी" खाने का मन है.. बिल्कुल वैसी ही.. जैसी तब बनाती थी..जब हमारी नयी नयी शादी हुई थी "

खैर एक बार तो आश्चर्य हुआ तब जब मन से बनाई हर सब्जी.. जिसे पहले मैं टेस्ट करती.. सब कुछ परफेक्ट 😊 फिर भी नुस्ख निकाल देते..😞

खैर फिर मन में एक उमंग भरा, फिर से वह अहसासों की सब्जी.. फिर से पूरे मन से बनाने की एक तलब सी लग गई..

जैसे लेखक अपने अहसासों को शब्दों में पिरोकर एक व्यवस्थित लेख तैयार करता है.. और परोस देता है हमें... बस उसी तरह हर मसालों में अपने अहसास को भर बना डाली "गट्टे की सब्जी"
( वह सब्जी जो 'वॉलपेपर' में है..)

बस जैसे ही एक व्यवस्थित लिखा लेख आतुर होता है पढ़े जाने को वैसे ही मेरी सब्जी के हर एक गट्टे आतुर हो रहे थे, खाये जाने को 😋😋

पहले ही निवाले में पतिदेव के मुँह से तारीफ सुनकर वैसी ही ख़ुशी हुई जैसे एक लेखक प्रसन्न हो जाता है.. अपने लिखे लेख पर सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर 😊

बस तभी मेरे दिमाग़ में विचार आया कि जो घरेलु औरत लिखना, पढना नहीं जानती..उसे हम अनपढ़ नहीं कह सकते है.. उनका बनाया खाना उनके अहसासों को परिभाषित करता है।

एक पढ़ा लिखा इंसान अपने अहसास, शब्दों में भरकर.. पन्नों पर उकेरता है.. और एक कम पढ़ी लिखी औरत अपने अहसास, मसालों के माध्यम से सब्जी में भरती हैं..

फिर तैयार है.. एक व्यवस्थित लेख 😊 कहीं पढ़े जाने को आतुर और कहीं खाये जाने को..😊😊


© अनकहे अल्फाज़...

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