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तिजोरी....

पत्नी के देवलोक गमन करने के बाद –
एक दिन पत्नी के गहनें बेचकर –
एक भारी – मज़बूत – अभेद –
तिजोरी खरीद लाया

अपने कमरे की दीवार में फिक्स करवाने के बाद –
घण्टों दरवाज़ा बन्द कर आराम से सोता रहा।

शाम हुई तो ज़ेवर के खाली डिब्बे तिजोरी में जमाया। कुछ पुराने अखबार भरें फिर,
अच्छी तरह से तिजोरी बन्द कर –
चाभियाँ सम्भालता हुआ घर से बाहर निकल गया।

सत्तर साल की उम्र है मेरी।
सड़सठ बसन्त देखने के बाद पिछले ही माह
पत्नी मुझसे जुदा हो गयी।

उसकी तेरहवीं तक तो कुछ पता न चला –
चूंकि घर भरा- भरा था –
नाते रिश्तेदारों का आना-जाना लगा हुआ था।
मुझें न एकाकीपन लगा –
न सहचर के जाने पर उत्तपन हुई
शून्यता का बोध हुआ।

उसके कारण ज़िन्दगी का मेला था–
जाकर भी एक आखिरी बार
मेला लगा गयी थी वह।

कहने को तो भरा पूरा परिवार है मेरा–
दो बेटे और दो बेटियां –
बेटे बेटियों का भी अपना परिवार है–
बड़ा नवासा तो खुद एक बच्चे का बाप है।
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