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गृहप्रवेश

"आओ..आओ... आओ "आँगन मे विश्वा पंछियों को बाजरा डाल रहा था, पर एक भी पंछी वहाँ नही आया।आँगन मे तुलसी क्यारी मे अगरबत्ती जल रही थी, किंतु उसकी खुशबू खो चुकी थी।विश्वा की आँखों से आँसू और बीता समय छलक रहा था।
"बाबूजी, ये फसल के पैसे, ये फलों के और ये सब्जियों के.. आप गिन लीजिए" विश्वा ने दशरथ जी से कहा।
"अरे बेटा, गिनना कैसा, तुम हिसाब क्यों देते हो, क्या हमें तुम पर विश्वास नहीं? ये लो, ये पैसे, तुम्हारे हाथ खर्च के लिये" बाबूजी ने कुछ रुपये विश्वा के हाथ पर रख दिए।
"जी बाबूजी" कहकर विश्वा कमरे से बाहर निकल...