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चप्पा कल का पानी (भारतांकित भाग-६)
आज कुछ चटपटी यादों को पंक्तियों का रूप देने की कोशिश है। काश तब पता होता ये बातें यादें बन कर कितना गहरा प्रभाव डालने वाली हैं। काश उसे थोड़ा और जी लेते। थोड़ी और तवज्जो उन लम्हों को दे पाते।

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अंकित करूं वो भोर है
तनिक ना जिसमे शोर है
प्रीत चहों ओर है
रागनी चांद चकोर है
पेड़ों पे बैठा मोर है

चप्पा कल का पानी निर्मल
एक बार फिर पीला दो
भोर टहलने खेत बगल से
हमको जरा मिला दो

अंगना में फैल कर
फिर से एक बार नहाना है
मोरी बंद कर स्विमिंग पूल
अंगना को बनाना है

आग तापने बैठ के बहरा
थोड़ी बतकई हो जाने दो
चाय की चुस्की, लिट्टी चोखा
थोड़ा बहुत चल जाने दो

थोड़ी चुगली दोस्तों से
करने में कोई पाप नहीं
तू ताड़क का माहोल रहे
कोई रउवा कोई आप नहीं

ट्रेन के जनरल डब्बे में
एक और यात्रा हो जाए
चनाजोर चटपटा मूंगफली
शोर जरा सा हो जाए

to be continued...........

© अंकित राज "रासो"

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