...

5 views

मदिरा पान - एक व्यंग्य ✍🏻✍🏻✍🏻
एक व्यंग्य 🥃🥃🥃🥃

मदिरापान और सभ्यता का दिखावा

वर्त्तमान समय में एक चलन बहुत चला है, घर में कोई भी शुभ काम हो तो चलो दारु पीते हैं ! कोई पार्टी है तो दारु पीते हैं, कोई गम है तो दारू पीते हैं, और हाँ इस बेहूदगी को बेहूदगी मत कहना अन्यथा सभ्यता को बुरा लग जाएगा!

हम खुद मदिरा पीकर सबको गरियाते फिरें लेकिन अपने बच्चो को इसके अवगुण गिनाते थकते नहीं हैं, हाँ जब वही छोटा बच्चा सवाल करे की पापा आप क्यों पीते हो तो बड़ी बेशर्मी से अनगिनत बहाने बनाकर उस बच्चे को बेवकूफ बनाते हैं जो सब समझता है समझदार हुआ तो ठीक वरना आगे जाकर बाप का साथ तो दे ही देगा 😊😊😊…

घर वापस आते समय शर्मिंदगी महसूस नहीं होती इनको क्युकी दारु के बिना भला कैसी शान, हाँ बाप दरवाजा खोलता है तो वो अपनी औलाद की इस उपलब्धि को नजर बचा कर इग्नोर कर देता है !

माँ का क्या ही कहना मोहल्ले वाले वैसे भी तारीफ करते हैं की उनका लड़का भरपूर दारु पीता है, तो वो बेबस माँ मार्किट में एक नया शब्द आया है ( मेरा बेटा OCCATIONALLY पीता है )ये बोलकर अपनी आखो से बहते आँसू रोकने की नाकाम कोशिश करती है, और हाँ माँ तो माँ होती है ऐसे बेटे को भी बुरा नहीं कहती खुद को दोष देते देते दुनिया से विदा हो जाती है !!

पत्नी की तो बात ही अलग है क्युकी शाम को घर आते समय दो पैग लगाया हुआ पति बड़े प्रेम से पूछता है क्या लाना है, अपने नसीब को गालिया देते हुए वो बस यही कहती है की बस तुम ही सही सलामत घर आ जाओ इतना ही काफी है !

अब अगला करवाचौथ भी तो मनाना है उस पैसो से अमीर और नसीब से दरिद्र हाउसवाइफ को !

और हाँ उसके घर में काम करने वाली का पति दारु नहीं पीता ये बात उसको हमेसा सालती है की काश मेरा वाला भी न पीता !!

प्रचंड और निम्न स्तर के मदिरा धारको को ये व्यंग्य बुरा लग सकता परन्तु इसके लिए भी उनको दारु की आवस्यकता जरूर होगी !!

पर धूर्तता में इन मदिरा धारकों का कोई सानी नहीं है, क्युकी उपरोक्त कही गयी हर सच्चाई को किसी न किसी आधुनिकता से परिपूर्ण बहाने से ढकने का हुनर इनमे कूट कूट कर भरा होता है !!