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बातें जिंदगी की
ये जो कुछ भी लिख रहा हूं मेरी गुजरती हुईं जिंदगी ने बताया है सिखाया है।बचपन के दिनों में जब हम थे हम सब को कुछ भी पता नहीं होता था,अजब सपने होते थे, ना कोई फ़िक्र होती थीं,ना ही मजहब धर्म जात की कोई ख़बर,बस खेला करते थे झूमा करते थे।दोस्त चलतें फिरतें ही बन जाते थें।ना ही किसी का धर्म पूछना ना ही जात से कोई दोस्ती का वास्ता होता था।जब वक्त गुजरा बड़े हो गए । दिल में एहसास जज़्बात जगने लगें। सोचा सब कुछ बचपन जैसा होगा ।पर अब तो दुनिया की सोच , दुनिया की रीत, दुनिया के अजब एहसास , खुदगर्ज भरा दिल ,ये सब देखने को मिला उम्र के चलते हुए सफर में। सबको ग़लत कहना सही नहीं है,पर इस ज़माने में मासूमियत की जगह नहीं है, इंसानियत की अदा नहीं है, बेशक बेशर्त वफा का प्यार नहीं है।आज हर कोई जरूरत के वक्त आता है और जरूरत मुकम्मल होते ही 'आप कौन है, आप कौन हैं'।पूरी दुनिया...