...

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तुम..
दिल ए झील में खिला कंवल हो तुम.
जिंदगी का खुशियों भरा पल हो तुम.

सर से लेकर पांव तलक मुकम्मल,
ग़ालिब की लिखी हुई ग़ज़ल हो तुम.

जो देखे, देखता ही रह जाए तुम्हे,
जीता जागता सा ताजमहल हो तुम.

दिल ए आसमां पे तुम्हारा कब्ज़ा,
खूबसूरत, तारों का, आंचल हो तुम.

बदन का हर एक अंग तराशा हुआ,
रब की कोशिश का, अमल हो तुम.

तुम्हें समझाना, समझना आसान,
इतनी, सीधी, इतनी, सरल हो तुम.
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अच्छा लगता है..
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सुबह से लेकर शाम, शाम की फिर रात करना,
बड़ा ही, अच्छा लगता है, तुमसे यू बात करना.

मशरूफ है, मिलने की फुर्सत नही, फिर भी,
रोज़ नए बहाने बनाके तुमसे मुलाकात करना.
बड़ा ही अच्छा लगता है, तुमसे यू बात करना.

कैसे हो ? कहां हो ? क्या कर रहे हो साहब ?
बेमतलब के ही तुमसे बारहा सवालात करना.
बड़ा ही अच्छा लगता है, तुमसे यू बात करना.

चांद बन कर चमकोगे, दिल ए आसमां पर,
इस बात का ही इंतजार, तारों के साथ करना.
बड़ा ही अच्छा लगता है, तुमसे यू बात करना.

बेशक तुम नही हो मेरे रूबरू तो क्या हुआ,
कागज़ पर बयां अपने दिल ए जज़्बात करना.
बड़ा ही अच्छा लगता है, तुमसे यू बात करना.

© मानसी_Ek Writer ✍️