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कन्यादान (प्रथम भाग)
प्राची अपनी मां बाप की इकलौती संतान हैं। बड़े लाड़ प्यार से पाला है उसके मां बाप ने। उसकी हर छोटी छोटी मांगे उन्होंने पूरी की है। आंखों की पलकों पर बिठाकर रखते थे अपनी लाडली को। प्राची के पिता रामलाल हाई कोर्ट के एक वरिष्ठ एवं सम्मानित अधिवक्ता हैं। माता मोहिनी कालेज प्रोफेसर। भगवान ने पैसे की कोई कमी नहीं रखी। याद है उसके जन्म के वे दिन जब उसके पिता ने उसकी मां को शहर के सबसे बड़े नर्सिंग होम में भर्ती कराया था।

रामलालजी : पहली संतान है मेरी। कोई असुबिधा नहीं होनी चाहिए डाक्टर साहब। पैसा चाहें जो लगे कोई फिक्र नहीं पर डिलीवरी नार्मल हो इसका ध्यान रखिएगा। बेवजह मोहिनी का आपरेशन कराकर उसका शरीर मै नहीं चिड़वाना चाहता।

डाक्टरों ने बताया कि साधारणतया अधिकांश डिलीवरी तो आजकल आपरेशन के द्वारा ही होती हैं पर उन्होंने भरोषा दिलाया कि मोहनी का बेवजह वे आपरेशन नहीं करेंगे। रामलाल ने अतिरिक्त नर्स देख रेख के लिए रख दिया।

भगवान का लाख शुक्र की डिलीवरी नार्मल हुई और बच्ची तंदुरुस्त पैदा हुई। डिस्चार्ज के बाद घर लाए तो मां बेटी का विशेष रखरखाव। दो नर्स देख रेख के लिए रख दिए, मां के लिए अलग और बेटी के लिए अलग।

रामलाल बेटे और बेटी में कोई अंतर नहीं मानते थे। बेटी उनके लिए बेटे से कम नहीं थी। नामकरण की रश्म मनाते हुए पत्नि से सलाह ली तो प्रोफेसर पत्नि ने प्राची नाम सुझाया और बेटी को नाम मिल गया…. प्राची। बड़ा प्यारा नाम है, रामलाल के बोल थे।

प्राची धीरे धीरे बड़ी होने लगी। नर्स की देख रेख में उसका लालन पालन होने लगा। प्रोफेसर मां को काम पर जाना पड़ता था। घर पर रामलाल की माताजी रहती, घर का ध्यान रखने के लिए।बचपन में तो प्राची की खिलौनों की पूरी एक नगरी बसी हुई थी। जो भी आता, कुछ न कुछ भेंट देता। प्राची को पा कर रामलाल और मोहिनी दोनों संतुष्ट थे और खुश भी।

धीरे धीरे प्राची स्कूल जाने लायक हो गई। रामलाल ने शहर के सबसे बड़े एवं महंगे स्कूल में दाखिला कराया, जहां रइसों के बच्चे ही सिर्फ पढ़ने जाते थे। प्राची की दोस्ती मंत्री के बच्चे, राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के बच्चे एवं नामी गिरामी हस्तियों के बच्चों से हुई। दोस्ती के नाते उनके घर प्राची का आना जाना लगा रहता था। नौकर चाकर थे ही देख रेख के लिए। कहीं भी जाती तो प्राइवेट गाड़ी से, ड्राइवर लेकर जाता था।

प्राची जितनी सुंदर थी उतनी ही आकर्षक भी। अपनी प्यारी बातों से किसी का भी मन मोह लेती थी। बड़ी ही होनहार और हाजिर जबाव थी प्राची। दोस्तों के माता पिता भी प्राची से बहुत प्यार करते थे और अपने घर बुलाते थे। प्राची की प्रसिद्धि बढ़ने लगी और रामलाल मोहिनी का सम्मान भी बढ़ने लगा। घर में मोहिनी खुद ही प्राची के शिक्षा का ध्यान रखती थी। उसने प्राची को शिक्षा के साथ संस्कार भी दिए। समाज में रहने, लोगों से घुलने मिलने, बड़ों का आदर करने, छोटों से बेइंतहा मुहब्बत करना, यह सब मोहिनी से विरासत में मिले प्राची को। प्राची पढ़ने में अब्बल थी, हमेशा कक्षा में प्रथम स्थान हासिल करती थी। स्कूल के सभी अध्यापक अध्यापिका उसे बहुत प्यार करते थे।

दसवीं का रिजल्ट आया तो तहलका मच गया। प्राची सिर्फ स्कूल ही नहीं, डिस्ट्रिक्ट टापर हुई थी। मां बाप के साथ स्कूल का भी नाम रोशन किया। मीडियावाले आ गए स्कूल में। स्कूल के प्रिंसपल और सेक्रेटरी का इंटरव्यु भी अखबार में छपा। स्कूल कमिटी बहुत खुश थी। उसने प्राची के इस उपलब्धि पर एक फंसन भी आयोजित किया और प्राची को इनाम के साथ स्कालरशिप की घोषणा भी की गई। उस दिन रामलाल और मोहिनी के खुशी का पारावार नहीं था। बेटी ने वह सब कर दिया था जो किसी बेटे से कहीं बहुत अधिक था। प्राची ने पढ़ कर कलेक्टर बनने की इच्छा जाहिर की। यह उसका सपना था। रामलाल ने उसे कालेज में दाखिला दिलाने के साथ आई. ए. एस. एंट्रेंस के लिए भी तैयारी करने की व्यवस्था कर दी। प्राइवेट ट्यूशंस भी रख दिए। वह मन लगाकर तैयारी में रम गई। नोट्स और गाइड से उसका स्टडी रुम पूरा भर गया था। बीए की परीक्षा में प्राची कालेज टापर रही पर आई. ए. एस. एंट्रेंस में थोड़ी मिस कर गई। उसे इसका बहुत दुख हुआ पर उसने हौसला नहीं हारा। और अधिक मेहनत और लगन के साथ वह फिर से तैयारी शुरु कर दी और अगले वर्ष फिर से एंट्रेंस में बैठने का निर्णय लिया।

हर साल रामलालजी प्राची का बर्थ डे बड़े धूमधाम से मनाते थे पर इस वर्ष विशेष तौर से हाल बूक कर पार्टी देनी चाही। इसके लिए उन्होंने होटल हिमताज उचित समझा क्योंकि वह सेंट्रली स्थित हैं जिससे मेहमानों को यातायात में कोई दिक्कत नहीं होगी। होटल बूक करने पहुँचे तो वहाँ उनकी मुलाकात मिस्टर राजेन्द्र से हो गई। राजेन्द्र ने बैठाकर उन्हें काफी आफर की और हाल चाल पूछने लगा।

राजेन्द्र बाबू : यहां कैसे आना हुआ सर ?
रामलालजी : हमारी बेटी प्राची की बर्थ डे के लिए हाल बूक करनी है सो आना पड़ा।

राजेन्द्र बाबू : सर, आप फोन पर हुक्म कर दिए होते, काम हो जाता।
रामलालजी : मैं समझा नहीं.....

राजेन्द्र बाबू : सर, यह मेरा होटल हैं। मैं चेयरमैन हूंँ इसका।
रामलालजी : क्या.....

राजेन्द्र बाबू : आप आराम से बैठिए, मैं सब इंतज़ाम कर देता हूँ......
(वेटर से) मैनेजर साहब को बुलाओ.....

मैनेजर : सर, आपने बुलाया.....
राजेन्द्र बाबू : देखो, रामलाल साहब हमारे स्पेशल गेस्ट हैं। इनके बेटी के बर्थ डे के लिए सेंट्रल हाल बूक कर दो और सारी फैसिलिटी प्रीमियम क्लास होनी चाहिये।

रामलालजी : राजेन्द्र जी, क्या कर रहे हैं आप ?
राजेन्द्र बाबू : सर, आपकी बेटी हमारी भी बेटी है। आपने केस में हमारा फेवर कर बहुत बड़ा एहसान किया है। अब मुझे सेवा करने दीजिए। आप निश्चिंत होकर घर जाइए। यहां की सारी जिम्मेवारी मेरी है। आप पार्टी के दिन सिर्फ फेमिली लेकर आ जाइएगा। बाकी सारी व्यवस्था मैं कर लूंगा।

रामलाल को राहत मिली। वे राजेन्द्र बाबू से गले मिल आश्वस्त हो घर लौटे।

मेहमानों को आमंत्रण के लिए कार्ड छपवाए गए और फिर शुरु हुआ मेहमानों को बुलाने के लिए कार्ड भेजने की प्रक्रिया। कहीं कोई मेहमान छुट न जाए, इसका विशेष ध्यान रखा गया। मेहमानों की फेहरिस्त लंबी थी और कई वी. आई. पी. शामिल थे। पार्टी के दिन मेहमानों को रिसीव करने की विशेष योजना बनाई गई ताकि हरेक मेहमान का गर्मजोशी से आवभगत किया जा सके। रिश्तेदारों को भी आमंत्रित किया गया।

..........क्रमश:

© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।

© Mreetyunjay Tarakeshwar Dubey.