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जाकी रही भावना जैसी.....
एक बार एक कवि महोदय हलवाई की दुकान पहुंचे
जलेबी ली और वहीं खाने बैठ गये।

इतने में एक कौआ कहीं से आया और दही की परात में चोंच मारकर उड़ चला। हलवाई को बड़ा गुस्सा आया उसने पत्थर उठाया और कौए को दे मारा। कौए की किस्मत ख़राब, पत्थर सीधे उसे लगा और वो मर गया।

– ये घटना देख कवि हृदय जगा। वो जलेबी खाने के बाद पानी पीने पहुंचे तो उन्होंने एक कोयले के टुकड़े से वहां एक पंक्ति लिख दी।

“काग दही पर जान गँवायो”

– तभी वहां एक लेखपाल महोदय, जो कागजों में हेराफेरी की वजह से निलम्बित हो गये थे, पानी पीने आए। कवि की लिखी पंक्तियों पर जब उनकी नजर पड़ी तो अनायास ही उनके मुंह से निकल पड़ा, कितनी सही बात लिखी हैं ! क्योंकि उन्होंने उसे कुछ इस तरह पढ़ा –

“कागद ही पर जान गंवायो”

– तभी एक मजनू टाइप लड़का पिटा-पिटाया सा वहां पानी पीने आया। उसे भी लगा कितनी सच्ची बात लिखी हैं। काश उसे ये पहले पता होतीं, क्योंकि उसने उसे कुछ यूं पढ़ा था –

“का गदही पर जान गंवायो”
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इसीलिए संत तुलसीदासजी ने बहुत पहले ही लिख दिया था –

“जाकी रही भावना जैसी,
प्रभु मूरत देखी तिन तैसी”!
© ✍️ अभिषेक चतुर्वेदी 'अभि'