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ब्रह्मांड एक सजीव सत्ता...
हम सजीव है... प्राणवायु ले सकते हैं.. महसूस कर सकते हैं..पर हमारे शरीर के बाहर और अंदर भी बहुत से ऐसे छोटे-छोटे जीवाणु है, जिन्हें हम देख नहीं सकते।

उन सब जीवाणुओं के लिए हमारा शरीर एक 'धरती समान निर्जीव है'... पर "क्या वास्तव में धरती निर्जीव है..?"

छोटी-छोटी बीमारियां जैसे खांसी,जुखाम..वह अच्छे जीवाणु स्वयं ठीक कर देते हैं.. जैसे कि प्राकृतिक आपदाओं को फिर से बेहतर स्थिति में हम ला सकते हैं,

पर यदि हमें तेज बुखार हो तो हमारे अच्छे जीवाणु मरने लगते हैं और हमें दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है.. उसी तरह पृथ्वी भी गर्म होती है और जीव मरने लगते हैं, पर दुःखद यह है कि हम उसे दवाई उपलब्ध नहीं करा रहें..

अनगिनत बीज रूपी दवाई हमें धरती के गर्भ में देनी होगी... विशालकाय वृक्ष बनेंगे... हरियाली होगी और धरती पुनः अपनी स्थिति में आ सकती है..

ब्रह्मांड एक सजीव सत्ता है जिसने हम जीवों को पनपने हेतु इस धरती को धारण किया है.. वैसे ही जैसे स्त्री ने धारण किया "गर्भाशय"...

© अनकहे अल्फाज़...

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