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मन हो शुद्ध : तब रुकेंगे युद्ध
प्रश्न:
सम्पूर्ण विश्व शिक्षित, ज्ञानी और समझदार होने के बावजूद भी युद्ध को प्राथमिकता कैसे दे देते हैं?

उत्तर:
✍🏻 सम्पूर्ण विश्व में--

शिक्षित लोग महत्वाकांक्षी होते हैं। अतः कुशिक्षित हैं।

ज्ञानी ज्ञानी लोग अहंकार के चलते ज्ञान का अमानवीय उपयोग करते हुए ईर्ष्या में जलते रहते हैं। अत: अज्ञानी हैं।

समझदार होने के बावजूद भी युद्ध को प्राथमिकता दे देने का कारण यह है, कि- मनुष्य कुशिक्षित व अज्ञानी है।

अर्थात् मनुष्य अपनी समझ का उपयोग सही दिशा में नहीं कर पा रहा क्योंकि वह सर्वांगीण रूप से सुशिक्षित नहीं है और अपने सत्यस्वरूप से अनभिज्ञ है।

युद्ध आसमान से नहीं टपकते। उनको हम ही जन्म देते हैं।

एक दूसरे के प्रति नस्ल/जाति/धर्म/ राष्ट्र को लेकर जो नफरत का माहौल बनता जा रहा है तथा लालची व शातिर पूंजीपतियों द्वारा संसाधनों की जो लूट मार मचाई हुई है, वही इन युद्धों का एकमात्र प्रमुख कारण है।

इनसे देशों/समुदायों के बीच भय, घृणा और प्रतियोगिता का ज़हर उत्पन्न हो जाता है।।

सभी देश एक दूसरे के प्रत्यक्ष या परोक्ष शत्रु बन जाते हैं।

फलस्वरूप आपस में एक दूसरे से डरे हुए दुनिया के देश अपना अधिकांश बजट, सुरक्षा को समर्पित कर देने हेतु विवश हो जाते हैं।

यह मानव-सभ्यता की विडंबना है।

एक ओर समझ का विस्तार हो रहा है, तो दूसरी ओर, उसे गलत दिशा में प्रयोग किया जा रहा है। क्यों कि- समझ का सतही विस्तार है, समझ में गहराई नहीं। परिणाम: युद्ध !

क्या इसका कोई हल है?

बिल्कुल है, यदि हम इस सत्य के प्रति जाग जाएं, कि- देश-रूपी जो सामुहिक चेतना है, उसका एक अंश हम भी हैं।

दूसरे शब्दों में, सभी व्यक्तियों की व्यष्टि-चेतनाएं मिलकर सामुहिक (समष्टि) चेतना का निर्माण करती हैं।

फलस्वरूप किसी समाज या देश की चेतना का स्तर, उसके सदस्यों की चेतना के स्तर का प्रतिबिंब है।

इस तथ्य से यह साबित होता है कि- विश्व में व्याप्त युद्धों की प्रवृत्ति के पीछे हम सभी दोषी हैं।

अतः समस्या का समाधान भी हमें ही करना है।

वह समाधान यह है, कि-

हमें अपने व्यक्तिगत जीवन से नफ़रत और प्रतियोगिता को निर्मूल करके, सामुहिक चेतना को परिशुद्ध करना है।

मानव समाज में सर्वांगीण शिक्षा व आध्यात्मिक-ज्ञान के अनुशीलन द्वारा, सादा जीवन उच्च विचार का दर्शन जिस दिन स्थापित हो जाएगा, उस दिन युद्ध समाप्त हो जाएंगे।

आइए, हम सब इस दिशा में कुछ सोचें, और कुछ करें !

अभी जो हम कर सकते हैं वह यही है कि-

✓(1) नस्ल/जाति/धर्म/भाषा/राष्ट्र के नाम पर किए जाने वाले समस्त भेदभाव भुलाकर, हम आपस में प्रेम पूर्वक रहें।

एक दूसरे के धार्मिक कर्मकाण्ड को सम्मान की दृष्टि से देखें और उससे होने वाले कष्ट को भी सहन करें।

एक दूसरे के त्योहार मिलजुलकर मनाएं।

✓(2) महत्वाकांक्षी शिक्षा को सर्वांगीण शिक्षा में रूपांतरित कर, अगली पीढ़ी की चेतना का उन्नयन किया जाए, जिसके अंतर्गत विद्यालयों में प्रत्येक बालक को-

प्राणिक-शरीर (Vital body), अर्थात् अच्छा स्वास्थ्य मनस-शरीर (Mental-body): अर्थात् बौद्धिक उन्नयन व आत्म-शरीर (Psychic-body) : अर्थात् ध्यान -योग

का समुचित शिक्षण-प्रशिक्षण दिया जाना अनिवार्य है। ताकि उन में पराचेतन (Super Consciousness) का अवतरण संभव किया जा सके।

यही मनुष्य की अगली उद्विकासीय‌ अवस्था है।

तथा यही संसार की समस्त समस्याओं का एकमात्र समाधान है।

परमात्मा मनुष्य को उसके एकमात्र लक्ष्य की ओर अनुप्रेरित करे। 🙏💖🙏