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आत्मविश्वास

आत्मविश्वास, शब्द विश्वास से परिपूर्ण है, पर यह विश्वास जब आपको स्वयं पर पूर्ण रूप से होगा तभी आप जान सकते हैं कि ‘‘आत्मविश्वास क्या चीज़ है ?‘‘ बिना आत्मविश्वास के किसी भी काम के सकारात्मक परिणाम की कल्पना ही बेमानी है, यानि काम चाहे कोई भी हो अगर करने वाला आत्मविश्वास की कसौटी पर खुद को पूरी तरह से संतुष्ट महसूस करता है तो ही बेहतर परिणाम की उम्मीद की जा सकती है ! आज जहॉं भी चर्चा किसी की सफलता के बारे में होती है, तो समझिए उसके पीछे आत्मविश्वास का निश्चित रूप से हाथ है और आये दिन अखबारों में जो आत्महत्या की खबरें पढ़ने को मिलती हैं, यह है, आत्मविश्वास की कमी का सीधा व स्पष्ट उदाहरण !

विज्ञान के दृष्टिकोण से देखा जाये तो हर इंसान की संरचना एक ही प्रकार की है पर फिर भी कुछ लोग साधारण इंसान के रूप में दिखाई देते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो सदा आगे बढ़ने की चाह लिए हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहते हैं, जब ऐसे लोगों को कोई कामयाबी मिलती है तो साधारण इंसान को इनकी कामयाबी तो दिखाई देती है पर उस कामयाबी के पीछे जिस ताकत ने उस कामयाबी के द्वार खोले, उस ताकत का संघर्षयुक्त मार्ग व आत्मविश्वास की शक्ति तो वही कामयाब इंसान जान सकता है, क्योंकि वह जो प्रकट होकर अन्य किसी को दिखाई नहीं देती ! इसी शक्ति का आत्ममंथन करना हमारी पहली जरूरत होनी चाहिए !

आत्मविश्वासी व्यक्ति हर परिस्थिति का सामना करने के लिए सदा स्वयं को तैयार करने में सक्षम रहता है और इसी की बदौलत आज नहीं तो कल परिणाम भी उसके पक्ष में निश्चित रूप से सामने आ ही जाता है !

शक्ति कवच है, आत्मविश्वास...

आप किसी भी बात में खुद को आजमा लीजिए, अगर आपको उस मामले में खुद पर पूरा भरोसा यानि आत्मविश्वास है, तो उस बारे में आपके बोलनेे का कुछ और ही अंदाज होगा और जहॉं आपको आत्मविश्वास पूरी तरह से नहीं होगा वहॉं उसके बारे में आपका स्वर ही परिवर्तित हो जायेगा, क्यों....सिर्फ इसी कारण से कि आत्मविश्वासी को आत्मविश्वास एक ऐसा अभेद शक्तिकवच प्रदान करता है, जिससे उसकी शक्ति कई गुणा बढ़ जाती है ! साधारण लोग किसी भी कार्य को करने बैठे तों बीच राह में किसी भी कारण से मायूस होकर वे अपनी राह बदल लेते हैं और फिर बदलने के चक्कर में ही पड़े रहते हैं, दूसरी ओर आत्मविश्वासी प्रवृति के व्यक्ति के पास किसी भी कार्य को करने की बात ठान लेने के बाद हर हाल में उसे पूरा करने की ही भावना प्रबल रूप में बनी रहती है जो कि निश्चित रूप से उसकी ताकत बन कर सामने आती है ! अगर आप किसी कार्य को पूर्ण करने से पहले अपनी राय नहीं बदलते और अपनी निश्चित सोच पर ही निरन्तर आगे बढ़ने की राह पर डटे रहते हैं तो यकीन मानिये आप में आत्मविश्वासी होने के गुण पूर्णतया मौजूद है, अन्यथा आप स्वयं अपने विवेक अनुसार अपना आत्मविश्वास बढ़ाते चले जायें... जैसे जैसे आत्मविश्वास के लक्षण आपके अंदर पनपने शुरू होगें, वैसे वैसे ही आपके कदम आपकी निश्चित मंजिल यानि उन्नति की ओर निश्चित रूप से बढ़ते चले जायेंगें !

इतिहास आपके सामने हैं...मौहम्मद गौरी ने 16 बार पृथ्वीराज चौहान पर हमला किया और हर बार उसे हार का ही मुंह देखना पड़ा ! अगर पहली या दूसरी, तीसरी या इतनी बार हारने के बाद वह चुप होकर बैठ जाता तो आज इतिहास कुछ और होता... परन्तु उसने 17 वे हमले में विजय पाई, यह हमारे लिए दुर्भाग्य की बात हो सकती है पर उसका तो सौभाग्य ही कहेंगें ना ! इसके बाद का हाल भी आपको बताना जरूरी है कि जब पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाया गया और उनकी आंखे निकलवा दी गईं तो भी अवसर आने पर उन्होंने किस प्रकार शब्द भेदी बाण से घातक प्रहार द्वारा तीर चलाया जो सीधा मुहम्मद गौरी के सीने को चीरता हुआ उसके प्राण भी लेकर ही रहा, क्या बिना आत्मविश्वास के यह मुमकिन था..?

अब तो आपको मानना ही चाहिए कि आत्मविश्वास के बल पर ही असम्भव को सम्भव किया जा सकता है यह शक्ति कहीं से भी प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है, यह निःसंदेह सभी के पास मौजूद है, पर कहते हैं न कि अगर वर्षो तक तलवार का प्रयोग ही न किया जाये और अचानक जिस दिन उसकी जरूरत पड़े तो वह सरलता से म्यान में से बाहर भी नहीं निकल पाती... क्योंकि वह जंग पकड़ चुकी होती है ! इसी प्रकार हमारी आत्मविश्वास की शक्ति क्षीण होकर लुप्त प्रायः हो चुकी है, जिसे पुनः जागृत करने की बेहद आवश्यकता है !

रानी झांसी, ने किस प्रकार नन्हें बालक को अपनी पीठ पर कपड़े में बांध कर भी युद्ध क्षेत्र में अंग्रेजों का डट कर सामना किया, और परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने के स्थान पर लड़ मरने की राह चुनी, इस एक दृढ़ निश्चय के कारण ही इस वीरांगना का नाम युगों तक अविस्मरणीय रहेगा, इस शक्ति का नाम हैं, आत्मविश्वास !

शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू ने असैम्बली में बम फैंका, उसे स्वीकार किया और अपनी गिरफतारी दी, और गुलामी व अत्याचार के विरोघ में हंसते-हंसते अनेक यातनाओं को झेलने के बाद फॉंसी के फंदे को चूम कर स्वागत किया, अपने आत्मविश्वास के ही दम पर !

एक दो नहीं ऐसे सैंकड़ो उदाहरण आपको दिखाई देते हैं पर अक्सर उनसे जो प्रेरणा और संदेश लिया जाना चाहिए, हम उस ओर से मुंह मोड़ लेते हैं !
आप अगर चाहें तो आप भी अपने कार्य में नये परिणाम आत्मविश्वास की बदौलत आसानी से प्राप्त कर सकते हैं बशर्ते आप खुद को इसके लिए तैयार करें...

घबराईए नहीं इसके लिए मैं कोई आपको फांसी का फंदा चूमने के लिए नहीं कहूंगा पर इतना तो आपको करना होगा कि आप जो भी कार्य करने का निर्णय लें उसे जी जान से पूरा करने का प्रयास करें और कामयाबी मिलने तक उसके लिए तत्परता से जुटे रहें और यदि किसी भी प्रकार की असफलता या मुश्किल इस बीच आपके सामने आयें तो उनकी समीक्षा करते हुए पर्याप्त निदान के पश्चात फिर दूनी रफतार से उस कार्य के लिए आगे बढें ! अगर असफलता या मुश्किलों से घबराकर बार बार आप अपना निर्णय या अपनी राह बदलते रहेंगें तो फिर उसमें नई नई कठिनाईयॉं आयेंगी !

आपको यह मान कर चलना होगा कि असफलता में ही सफलता छिपी है, जिसे हर हाल में ही आपको सामने लाना है ! वह राह जो सीधे मंजिल पर पहुंचाती है उसकी सीढ़ियों के स्टैप ‘‘उत्साह, नेक नीयत, दृढ निश्चय,व्यवहारिक निर्णय पूर्ण निष्ठा एवं समर्पित भाव हैं पर इस मार्ग की रैलिंग ‘आत्मविश्वास" है रैलिंग के बिना भी सीढ़ियॉं चढते चले जायें पर गिरने की तो संभावना बनी ही रहेगी पर रैलिंग पकड़ कर इन सीढ़ियों पर आगे बढ़ना, विश्वास करें ‘शत प्रतिशत सुरक्षित है’ !

एक बात तो अहम है, कि सिद्धांत के आधार पर लिये गये निर्णय में असफलता मिल भी सकती है पर व्यवहारिकता को आधार बनाकर लिये गये निर्णय में असफलता की संभावना काफी कम रहती है, उस पर भी पूरा ध्यान देते हुए और अपनी गलतियों व असफलता की समीक्षा के पश्चात यह निश्चय करें कि ‘‘अब मैं इस गलती के चक्कर में नहीं आने वाला’’ इस विश्वास से जब आप पुनः निर्णय लेने की स्थिति में खुद को महसूस कर सकेंगें तो आपको आत्मविश्वास की महत्ता स्वयं मिलती चली जायेगी और आपके अधिक से अधिक लिये जाने वाले निर्णय इस कसौटी पर सही होने से आप में निर्णय लेने की विषेष योग्यता का उदय होगा !

इस प्रकार से आपको जो भी जानकारी व ज्ञान प्राप्त होगा, वह आपकी ऐसी पूंजी है जिसे कभी कोई आपसे छीन नहीं सकता और चूंकि उसी की बदौलत आपने अपनी निर्णय क्षमता को विकसित किया है,इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि इसके बाद आपके अधिकतर निर्णय यकीनन ‘प्रभावी’ होंगें !

सिखों के तृतीय गुरू श्री गुरू अमर दास जी एक बार अज्ञातवास में चले गये, सारी सिख संगत गुरू जी को तलाशती रही और तब पता चला कि उन्होंने एक ऐसे भवन में समाधी लगा रखी है, जिसके द्वार पर लिखा था कि जो इस द्वार को ‘‘खटखटाने या खोलने का प्रयत्न करेगा न वो मेरा शिष्य, न मैं उसका गुरू’’ सिंख संगत वहॉं जाती इस सूचना को पढ़ती और परेशान होकर वापिस लौट जाती, जब यह बात श्री गुरू नानक देव जी के अनन्य भक्त बाबा बुढढा जी को पता चली तो वे तत्काल वहॉं पहुंचें और उन्होंने भी इस सूचना को पढ़ा और फिर जानते हैं उन्होंने क्या किया, उन्होंने न तो दरवाजा खटखटाया, न खोलने का प्रयत्न किया अपितु वे भवन की दूसरी ओर गये और उस कमरे में जिसमें गुरू जी एकांतवास में थे उसकी दीवार में छेद कर अंदर जा पहुंचे और गुरू जी को संगतों को दर्शन देकर निहाल करने की प्रार्थना कर संगतों को गुरू दर्शनों का गौरवशाली कार्य किया ! इस प्रकार का युक्तिसंगत निर्णय क्या बिना आत्मविश्वास के सम्भव था ?

बस आपमें भी यही आत्मविश्वास की भावना प्रबल हो - यह तभी मुमकिन है जबकि आप स्वयं इसके लिए खुद को तैयार करेंगें !

-प्रभजीत सिंह

© Prabhjeet Singh