...

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मां का बक्सा...
हाँ.. मेरे पास है
दुनिया के सबसे बड़े खज़ाने का नक्शा,

वो आगे से मुड़ी हुई लोहे की चाबी
औऱ वो पुराना सा "माँ" का टिन का बक्सा,

बचपन में अगर कोई सबसे क़ीमती चीज़ थी तो वो थी माँ का वो पुराना सा टीन का बक्सा...,

जादू तो बहुत देखे पऱ असली जादू तो "माँ" के उस छोटे से बक्से में था,

"माँ" जब भी उसमें हाथ डालती तो कुछ ना कुछ मिल ही जाता था.. किसमिस क़भी बादाम क़भी छुआरे
औऱ वो रुमाल की गांठ में बंधे वो पांच दस पैसे...,

"माँ" वैसी अमीरी फिऱ क़भी नहीं आयी ज़िन्दगी में,

वो बक्सा तो मैंने अब भी सम्भाल के रखा है पऱ.. उसमें अब वो जादू नहीं है,
"माँ" आपने साथ बचपन के वो सारे तिलिस्म भी ले गयी,

पऱ मैं अब भी उस बक्से में ताला लगा के रखता हूँ,

"माँ" जैब भले ही क़भी-क़भी ख़ाली हो जाती है पर तुम्हारी यादों के खज़ाने क़भी ख़ाली नहीं होते,

वो पाँच दस पैसे तो अब नहीं रहे "माँ"
पऱ दुनिया के सबसे बड़े खज़ाने का नक्शा है मेरे पास..

तुम्हारे बाद कुछ बेशक़ीमती है मेरे पास तो वो ही है "माँ"

"तुम्हारा वो टिन का बक्सा"
© बस_यूँही