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"प्रपोज डे "की परीक्षा
बात पिछले वर्ष की है।हमारे एक बहुत पुराने घनिष्ठ मित्र मिले।
मित्र ने पूछा, आज प्रपोज डे है। आपने क्या किसी को प्रपोज किया है?हमारे चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं।फिर भी उत्सुकतावश हम पूछ बैठे,यह क्या होता है?
वह बोला, आप जानकर भी अनजान क्यों बन रहे हैं?आप बच्चे तो हैं नहीं,जो आपको मालूम न हो?
हमने कहा,"हो सकता हो मुझे सही न मालूम हो।
जो तुम इसके बारे में जानते हो, वह हमें बता दो।"

हमारे मित्र बोले, प्रोपोज डे में हर प्रिय अपने प्रियतम को प्यार के प्रमाण में प्रस्ताव देता है,कि वह उसके साथ ही जीवन यापन करना चाहता है या चाहती है और उम्मीद करता है कि उनका प्यार परवान चढ़े।
यह सब किस को साक्षी मान कर किया जाता है?हमने पूछा।
अजी भाई साहब, प्रेमी युगल अपने अन्तर्मन की आवाज से एक दूसरे के सामने प्यार के नाम की शपथ लेकर अपना प्रस्ताव पेश कर देते हैं।
हमने पूछा,यह प्रस्ताव कहां तक सफल होते हैं?
और आप को तो विवाह किए हुए अभी दो वर्ष ही हुए हैं,और आप स्वयं भी एक डाक्टर होने के नाते
प्रगतिशील विचार के व्यक्ति हैं।
सच बताना दोस्त, आपने प्रोपोज डे के दिन ही उनके सामने अपना प्रस्ताव रखा था।
मित्र ने झुंझलाहट में उत्तर दिया, अब तुम पर्सनल हो गये,। मैं तो जनरल बात कर रहा था।
हमने तो मैडिकल में पढाई साथ साथ की।पर विवाह के समय सब कुछ परिवार के बड़े बुजुर्ग की सलाह मशविरा से भारतीय संस्कृति के अनुसार हुआ।पर तुुम तो अभी बैचलर हो,अपना सोचो?
अरे भाई जिस राह तुम नहीं गये, वहाँ मुझे जाने को क्यों कहते हो?मुझे डर भी लगता है कि कहीं अपमानित न होना पडें।
बातचीत तक तो ठीक-ठीक है, पर आगे.....कोई क्या समझेगा?हमने कहा
मित्र बोले, तुम तो रह गए पढ़ लिख कर भी निपट गंवार के गंवार। इतनी ऊंची शिक्षा, ऊंचा पद, पर
विचार एकदम पिछड़े।यूं लगता प्रागैतिहासिक काल का कोई इंसान धरती पर उतर आया है।
हमारे आत्म सम्मान को ललकारा गया था।
हम भी अपना आपा खो बैठे।हमने कहा,पार्क में बैठकर या किसी रैस्टोरेंट की पिछ्ली सीट पर बैठकर ,सबकी नजरों से मुंह छुपाकर ,लबों को थोड़ा सा खोलकर ,फुसफुसाहट से किए गए वादों को तुम प्रोपोज डे कहते हो?यह कैसा तुम्हारा आधुनिकीकरण है।
इसी को आप माडर्न कहते हो? इसकी नींव में भारतीय संस्कृति की ईंटों की दीवार नहींहै।
आधुनिकीकरण के बालू के ढेर पर यह प्यार की इमारत कब तक टिक पायेगी?मुझे इसमें संदेह है।
मित्र ने कहा, तुम शुरू से ही अन्तर्मुखी हो,इसी कारण अब तक तुम पर किसी के इश्क का परवान नहीं चढा।न ही तुमने किसी से इश्क किया।जरा सोचो,नवयुवकों के भी तो अरमान होते हैं।सब कुछ बड़े-बुजूर्ग की सहमति से हो ,यह अच्छा है पर क्या इसके लिए वे अपने अरमानों का गला घोंट दें?
हम उसकी बेबुनियाद बातों से ऊब चुके थे। हारकर हमने कहा, आप हमारे घर चलकर अपने अंकल और आंटी के सामने अपना पक्ष रखना।
मित्र बोले, हम तुम्हें बचपन से जानते हैं।मैं तो क्या, मेरे जैसे पांच और व्यक्ति भी आ जाए तो भी
आपको अपने संस्कार से डिगा नहीं सकते। मैं तो तुम्हारी परीक्षा ले रहा था।
अच्छा भाई, चलते हैं, आपकी भाभी इंतजार कर रही होगी,कहते हुए उसने मुझसे विदा ले ली।

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