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उसे लगता है "अब सब-कुछ ठीक है"
मुझसे किसी भी रूप में विदाई नहीं देखी जाती। दुःख बर्दाश्त नहीं होता। मैं ग़म की हर परिस्थिति से खुद को भगाती आई हूँ। मैं बहुत कमज़ोर हूँ, अलविदा कहने की ताक़त मुझमें नहीं होती।
विदा के नाम से ही कदम पीछे हटने लगते हैं... जब कोई छोड़ कर जाता है तो धड़कनें बढ़ जाती हैं। आवाज़ में कपकपी आ जाती है।
बिछड़ने का एक अजीब सा डर लगने लगता है।
मुझसे थामे गए हाथ छूट नहीं पाते।
तुम्हें नहीं पता.. मगर जब तुम जा रहे थे तो पलट गई थी मैं। आँखों को हाथों से ढक लिया था। मगर पूरी तरह से आँख बंद नहीं की। एक बार ओर देखने की ललक ख़त्म कहाँ होती है।
यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे छोटा बच्चा डर जाने पर आँखों को हाथ से ढक लेता है।
उसे लगता है.. "अब सब कुछ ठीक है"।
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