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#प्रेम_दिवस...
आज वेलेंटाइन डे है...
यानि 'प्रेम दिवस'... लेकिन इसका नाम अंग्रेजी में तो 'लव डे' होना चाहिए था न.. फिर वेलेंटाइन डे क्यूं..?

आइए इसका इतिहास जानते हैं.. तीसरी शताब्दी में रोम में वैलेंटाइन नाम का एक पादरी हुआ करता था... वो लोगों को प्रेम करने का संदेश देता था... उस समय के राजा क्लॉडियस द्वितीय ने इसके विरुद्ध आदेश दिया कि वो ऐसा करना बंद कर दे.. लेकिन पादरी जी ने अपना कर्म नहीं छोड़ा.. तो राजा ने 14 फरवरी को उसे फांसी पर चढ़ा दिया.. तभी से इस दिन को वैलेंटाइन डे के नाम से मनाया जाने लगा.. वैसे तो वेलेंटाइन डे ईसाई धर्म से जुड़ा हुआ है.. पर धर्म कोई भी हो, सब प्रेम करना ही सिखाते हैं.. नफरत करने की सलाह किसी भी धर्म में नहीं लिखी.. चाहे श्री कृष्ण हों, मुहम्मद साहब हों, गुरु नानक हों या ईसा मसीह.. हम किसी के भी माध्यम से प्रेम करना सीख रहे हैं तो इसे बुरा नहीं मानना चाहिए... इसे गलत कहना भी उचित नहीं.. किसी भी धर्म से घृणा करने का अधिकार हमें है ही नहीं.. कुछ अतिवादी लोग जब कहते हैं हमारे भारत मे इन 7 दिनों में ही प्यार थोड़े होता है.. यहां तो प्रत्येक दिन प्यार का होता है... हमारे यहाँ तो बसंत से ही प्यार शुरू हो जाता है.. बेशक हो जाता है... अगर हर दिन प्यार का होता तो चारों तरफ आज नफरत न फैली होती.. भाई भाई से, पड़ोसी पड़ोसी से, हिन्दू मुसलमान से मुसलमान हिन्दू से, पाकिस्तान भारत से नफरत की आग में न जल रहे होते... इसी 14 फरवरी को पाकिस्तान ने पुलवामा में अटैक करके हमारे 40 जवान शहीद न कर दिए होते...

भगवान श्री कृष्ण तो प्रेम के देवता हैं, महावीर स्वामी तो प्रेम के संदेश वाहक हैं.. ये सब यहीं पैदा हुए हैं, फिर भी हम इनसे इनके जैसा प्यार करना नहीं सीख पाए.. आज अगर सात दिनों के माध्यम से युवा अलग अलग प्रतीकों के माध्यम से प्रेम की इबारत सीख रहा है तो कल एक माह और वर्ष भर प्यार करने की पोथी भी पढ़ेगा... इंसानियत के बीच बढ़ती हुई खाई पटेगी और मानवता के बीच प्रेम का फूल मुस्कुराएगा...
श्री कृष्ण ने भी यही कहा है कि अच्छाई और प्रेम हमें जहां भी जिस माध्यम से भी मिले.. उसे गृहण कर लेना चाहिए... अच्छाई को सीखना और प्रेम को बांटना चाहिए...

इसलिए प्रेम दिवस मनाने में कोई बुराई नहीं है...बशर्ते इसे गलत तरीकों, गलत मकसद के लिए ना मनाएं... कई बार सोचती हूॅं कि पता नहीं वो कौन शख्स था.. जिसने चुम्बन और आलिंगन को कामुकता और हवस की संज्ञा दे डाली...
मेरा मानना है कि चुम्बन कामुकता हो ही नहीं सकता.. यह प्रेम की अभिव्यक्ति का पवित्रतम प्रतीक है...आलिंगन एक सुखद अनुभूति है..

अगर ऐसा नहीं होता तो किसी अबोध शिशु को गोद में लेते ही हमारे मन में उसे चूमने की इच्छा कभी नहीं होती... चुम्बन पवित्र और निश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति है... इसलिए इसे गलत सोच, गलत भावनाओं के साथ नहीं जोड़ना चाहिए... हमें जीवन में सकारात्मक सोच के साथ.. प्रेम करते हुए जीना चाहिए...

आइए, नफरतों के खेत मे प्यार की फसल उगाएं, पुलवामा में मारे गये 40 जवानों को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दें, और सबको बोलें मोहब्बत ज़िंदाबाद...मोहब्बत ज़िंदाबाद🙏

#साँझ...✍️
#Happy_velentine_day
#नमन_शहीदों_को..🙏