गुलमोहर
कितने सुहाने पल होते थे नं जब छोटे से रास्ते से हाथों में हाथ थामें हम गुजरते थे….धूप के असर को कम करने गुलमोहर की छाँव में खड़े होकर एक दुसरे के थकें चेहरे की ओर देखने की देरी होती थी बस….तुम अपने साडी के पल्लू से मेरे चेहरे के पसीने को पोंछती और फिर खुदके भी……मेरा गमछा कभी तुमने निकालने नहीं दिया….
तुम भी तो कितने आशिक़ मिजाज के तब भी थे और अब भी वो शरारतें कम नहीं हुई...
तुम भी तो कितने आशिक़ मिजाज के तब भी थे और अब भी वो शरारतें कम नहीं हुई...