...

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गुलमोहर
कितने सुहाने पल होते थे नं जब छोटे से रास्ते से हाथों में हाथ थामें हम गुजरते थे….धूप के असर को कम करने गुलमोहर की छाँव में खड़े होकर एक दुसरे के थकें चेहरे की ओर देखने की देरी होती थी बस….तुम अपने साडी के पल्लू से मेरे चेहरे के पसीने को पोंछती और फिर खुदके भी……मेरा गमछा कभी तुमने निकालने नहीं दिया….

तुम भी तो कितने आशिक़ मिजाज के तब भी थे और अब भी वो शरारतें कम नहीं हुई है……..

हमने ऐसा क्या कर दिया भई……….

अच्छा….तो वो भी हमें ही याद दिलाना पडेगा…..मेरे लिए कहते थे…..इस राह पर जीतने भी गुलमोहर के पेड़ है वो तुमने इसलिए लगाये है कि मेरे पैरों में छाले नं पड पाए…..बुद्धु कही के……
सैंडील ना होती थी पैरों में…….

वो तो तुम ना पहनती तो मैं गुलमोहर के फूलों को बिछा देता तुम्हारे रास्ते में……..

वाह वाह…..आये बडे….. खडूस…..

ऐ……ये तुम्हारी मिठी सी गाली के ही तो हम दिवाने हो गये थे…..

रहने दो …एक नंबर के नौटंकीबाज़……

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ऐसा ही तो प्रेम था दोनों के बीच…..बिलकुल राधाकृष्ण की तरह…..🌺🌺
एक सुबह की खिली धूप….
एक रात की प्यारी मुस्कान से मोहने वाली….

सुरज और निशा……
नाम की सार्थकता को जीते दो पंछी….
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अचानक बारिश की बुंदों से दोनों की नोंकझोंक बंद हुई…..एक दुसरे की और देखके ऐसे खिलखिलाकर हँस पडे…..जैसे कुदरत बीना माँगे मुराद पूरी करना चाह रहा हो…..
तपती ज़मीन पर मानसून की पहली बुंदो ने जैसे ही चूमा……सुरज और निशा ने एक दुसरे के दायें हाथ को अपने हाथ में लेकर गुलमोहर के पेड के दायरें से बाहर निकलकर बारिश की बुंदों से अपने बदन को मनमर्ज़ी भिगोया… बारिश अब काफ़ी तीव्र हो चूकी थी……दोनों लव बर्डस खूब भीग रहे थे……
दूर खड़ा गुलमोहर मुस्कुरा रहा था…..
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© ख़यालों में रमता जोगी