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Kedarnath- ek dard Bhari daastaan
सुबह के पांच बज रहे थे। बहुत सुंदर मौसम था। हम लोगों ने केदार नाथ बाबा का बहुत अच्छे से दर्शन किया और पूरा वक्त वहीं बिताया। हम सब वहीं पर कुछ देर के लिए बैंठ गए। मैंने कुछ तभी उन दूसरों पहाड़ों पर चमकता हुआ देखा। मैं उसके तरफ बढ़कर देखी। और मानो उन सफेद चादर की बर्फ़ में कुछ काला अंधेरा सा छा गया हो। ऐसा घोर अंधेरा छाया था वहां, जैसे कुछ चेतावनी दे रहा हो और वो मढ़ी के समान चमक कहीं उन अंधेरे में गायब सी हो गईं थीं। तभी मां आवाज़ देती हैं- "जिया, जिया बेटा, वहां क्या कर रही हैं। चल हमें नीचे लौटना हैं। हां- मां अभी अाई- मैंने इतना कह कर वापस उन पहाड़ों को देखा तो वो सब सारी रोशनियां गायब! मैंने सोचा कि मैं बहुत थक चुकी हूं इसलिए शायद ये सब दिख रहा हो। मैं वापस चली गई वहां से। मैं, अवि, मां और पापा के साथ जून कि छुट्टियां बिताने आए थे। पापा के दोस्त का परिवार भी हमारे साथ ही था। हम लोगो ने खूब मस्ती की- अब वक्त था वापस घर लौटने का। हमलोग चलते फिरते कुछ किलमीटर नीचे आए। अभी आधे से भी बहुत कम रास्ता हम सबने तय किया था। पापा ने और उनके दोस्त ने कहा कि अब हमे थोड़ा आराम कर लेना चाहिए। हम सबने एक तरफ अपना कैंप लगाया- सब थके थे इसलिए सब तुरंत सो गए।शाम के कुछ छह बज रहे थे तभी...