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इंसान: गलतियों का पिटारा
दोस्तों हम सब की ज़िंदगी में ऐसा दिन ज़रूर आता है जब हम अपनी ग़लती के लिए ईश्वर को या अपनी नियति को जि़म्मेदार ठहराते हैं। हम से जाने अनजाने ग़लती होना स्वाभाविक है, आखिर हम इंसान है, भगवान तो नहीं। फिर भी परिस्थिति के आगे हम ख़ुद को विवश पाते हैं और एक ग़लती को छुपाने हेतु ग़लतियो पर ग़लती करते जाते हैं। फिर एक समय ऐसा भी आता है कि हमें उन ग़लतियों का आभास होता है और हम प्रायश्चित करना चाहते हैं पर क्या ये सब इतना सरल है?
अधिकांश समय हमें आभास होते होते काफ़ी देर हो जाती है और हम कुछ नहीं कर पाते, इसके लिए भी हम उस ऊपरवाले को दोषी करार देते हैं। पर क्या हमारा ऐसा स्वभाव क्षमा योग्य है, बिल्कुल नहीं। कहते हैं इंसान ग़लतियों का पिटारा है,तो क्या इसका मतलब ये है ग़लती करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है? मेरी राय से जब हमें हमारी ग़लती का आभास होता है, हमें उसी क्षण उसे सुधारने हेतु क़दम उठाना चाहिए ताकि भविष्य में हम ख़ुद का सामना कर सकें बिना किसी संकोच के। और सब से ज़रूरी बात, जितना हो सके ख़ुद को सकारात्मक रखें, जिससे कि हम कुछ ग़लत सोचें ही नहीं।
समय समय की बात है,समय के आगे किसकी चलती है। बस इतना ध्यान में अवश्य रखना कि ये दुनिया घात लगाए बैठी है कि कब हमसे कोई चूक हो और कब हमें जवाब देना पड़े। तो ऐसा कोई काम न करें कि आप संदेह के घेरे में आएं।
धन्यवाद 🙏
© Aphrodite