...

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बेहद ख़ास
सुनो.....😊
कुछ कहना था तुझसे
पता है
जब तुम्हें पहली बार देखा
तों नजरें ठहर सी ग‌ई थी
गुस्सा था और खुशी भी थी
समझ पाना मुश्किल था
और जों समझा वो बिल्कुल विपरीत था
शायद याद नहीं हो तुम्हें
वो तुम्हारा पहली दफा मिलना
हमें नजर‌अंदाज करना तुम्हारा
सब बेहद ख़ास थें
बस हम अनजान थे
पहली दफा जों रूबरू हुएं थें
सोचा था होगा कोई तेरे दिल के करीब
दिल में होगा बसेरा हमारा
हमें तो यें ख़्याल भी ना था
ख़ामोश जुबां और तन्हाई पसंद करते थे
यादों मे तुम्हे बसा रखा था
चाह चंद लम्हात गुफ्तगू के हों तेरे संग
लब्बो पर मुस्कराहट का पहरा
और दिल अक्सर ख़ुद को कोसा करता था
हर धड़कन फ़िक्र तेरी
बस ज़िक्र तेरा कभी जुबा से हुआ नहीं
शायद आज़ भी हों हम तेरे दिल के करीब
या कहीं दिल के कोने में दफ़न हो
ख़ामोशी का दामन थामे बैंठी है जुबां तेरी
ना जाने ओर कितना सफ़र यूं ही
तेरे सहारे मुस्कुराहट लिए कटेगा
हक़ तों नहीं मगर यकीन है शायद
अपनी ख़ामोश जुबां लिए
तुम हमें आज़ भी सुनना पसंद करते हों
ख़बर है अब तुम कुछ कहने कि चाह रखते नहीं
दर्द हैं और बयां करते नहीं
महसूस होता है और मन भी है
तेरा हाल -ए-दिल तुझसे अपनी जुबां बयां करें
मगर डरते हैं तुझे खोने से




© पलक शर्मा



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