प्यार और शादी
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प्यार और शादी शायद किसी ज़िन्दगी के नदी में वो दो किनारे हैं जिसमें एक इंसान सिर्फ समझौता कर पाता है। कभी उसकी नाव इस किनारे लगती तो कभी उस किनारे और ना तो उसमें कोई डूब सकता है और ना ही उससे बाहर निकल सकता है। ख़ैर मुद्दा ये है कि आप कितने अच्छे तैराक हैं इसलिए जितनी समझदारी से आप समझौते को मंजूरी देंगे उतनी ही शांतिपूर्ण आपकी ज़िंदगी होगी।
यहां अगर शांति शब्द के विपरीत अर्थ को देखा जाए तो हालात आप समझ सकते हैं। अक्सर आपने देखा होगा जो लोग विद्रोही व्यवहार के होते हैं उनके जीवन में शांति सिर्फ शब्द मात्र होते हैं और यह विद्रोह कभी समाज, प्रशासन, परिवार तो कभी अपने आप से भी होता है।
अब हम लौटते है विषय वस्तु की ओर जहां मैंने प्यार और शादी को दो किनारा कहा है। अक्सर प्यार के परिभाषा में हमसब ने यही पड़ा होगा कि इसके एहसास पर कोई ज़ोर नहीं चलता, इसका ना कोई मजहब है और न जात न धर्म,
ना कोई हिसाब ना किताब और ना स्वार्थ। अगर होता है तो सिर्फ सुकून और समर्पण, आपके पास कुछ नहीं होता फिर आपको उन्हीं एहसासों में पूर्णता की अनुभूति होती है और जरूरत पड़ने पर आप सबकुछ समर्पित कर सकते हैं फिर चाहे वो समर्पण शारीरिक, मानसिक और आत्मिक क्यों न हो। किसी ने सच ही कहा है प्यार अंधा होता है, शायद इसके पीछे का तथ्य यह है कि इसमें दिल की हुक़ूमत चलती है दिमाग पर और इस तरह हम जो भी फैसले लेते हैं वो भावनाओं में बह कर लिए जाते हैं, तब न हमें सही का पता होता है न गलत की समझ। ये भावनाएं इतनी प्रबल होती है कि यह रिश्ते की मर्यादा पर भारी पड़ सकती है जिसका उदाहण हम आए दिन अख़बारों में पढ़ते, न्यूज चैनलों में...
प्यार और शादी शायद किसी ज़िन्दगी के नदी में वो दो किनारे हैं जिसमें एक इंसान सिर्फ समझौता कर पाता है। कभी उसकी नाव इस किनारे लगती तो कभी उस किनारे और ना तो उसमें कोई डूब सकता है और ना ही उससे बाहर निकल सकता है। ख़ैर मुद्दा ये है कि आप कितने अच्छे तैराक हैं इसलिए जितनी समझदारी से आप समझौते को मंजूरी देंगे उतनी ही शांतिपूर्ण आपकी ज़िंदगी होगी।
यहां अगर शांति शब्द के विपरीत अर्थ को देखा जाए तो हालात आप समझ सकते हैं। अक्सर आपने देखा होगा जो लोग विद्रोही व्यवहार के होते हैं उनके जीवन में शांति सिर्फ शब्द मात्र होते हैं और यह विद्रोह कभी समाज, प्रशासन, परिवार तो कभी अपने आप से भी होता है।
अब हम लौटते है विषय वस्तु की ओर जहां मैंने प्यार और शादी को दो किनारा कहा है। अक्सर प्यार के परिभाषा में हमसब ने यही पड़ा होगा कि इसके एहसास पर कोई ज़ोर नहीं चलता, इसका ना कोई मजहब है और न जात न धर्म,
ना कोई हिसाब ना किताब और ना स्वार्थ। अगर होता है तो सिर्फ सुकून और समर्पण, आपके पास कुछ नहीं होता फिर आपको उन्हीं एहसासों में पूर्णता की अनुभूति होती है और जरूरत पड़ने पर आप सबकुछ समर्पित कर सकते हैं फिर चाहे वो समर्पण शारीरिक, मानसिक और आत्मिक क्यों न हो। किसी ने सच ही कहा है प्यार अंधा होता है, शायद इसके पीछे का तथ्य यह है कि इसमें दिल की हुक़ूमत चलती है दिमाग पर और इस तरह हम जो भी फैसले लेते हैं वो भावनाओं में बह कर लिए जाते हैं, तब न हमें सही का पता होता है न गलत की समझ। ये भावनाएं इतनी प्रबल होती है कि यह रिश्ते की मर्यादा पर भारी पड़ सकती है जिसका उदाहण हम आए दिन अख़बारों में पढ़ते, न्यूज चैनलों में...