...

12 views

बड़ी हवेली (कल आज और कल)
"वीरे ओ वीरे, रुक मैं भी आ रहा हूँ, देख माँ ने गाजर का हलवा बनाया है, अरे थोड़ा धीरे चल अभी पाठशाला शुरु होने में बहुत समय है, साथ में बैठ कर खाया जाएगा, सुन न यार जीते आज गणित की परीक्षा के वक़्त थोड़ा मदद कर देना," 15 वर्ष का हरप्रीत अपने मित्र इंद्रजीत से कहता है।

उसका मित्र इंद्रजीत जवाब देता है" ठीक है मैं तेरी मदद कर दूँगा बस याद रखना गाजर का हलवा पूरा मैं खाऊँगा "।

" हाँ,.. चल खा लेना, पर मदद ज़रूर करना ", हरप्रीत अपने मित्र से कहता है।

पाठशाला के बाद दोनों सीधा अपने घर की ओर जाते हैं, गाँव के चौराहे पर काफ़ी भीड़ लगी थी, इंद्रजीत का घर वहीं पर था, दोनों दौड़ते हुए भीड़ को चीरकर घर के मुख्य दरवाज़े से अंदर पहुंचते हैं, सामने चार लाशें रखी थीं जो सफ़ेद चादर से लिपटी हुई थीं, उनमें से एक लाश हरप्रीत के पिता की थी और बाकी तीन लाशें इंद्रजीत के पिता और दो बड़े भाईयों की थीं। घर में मातम का माहौल छाया हुआ था, एक ओर घर और पड़ोस की महिलाएँ बैठकर रो रहीं थीं तो दूसरी ओर पुरुषों का झुंड सिरों को झुकाए बैठा था, इंद्रजीत और हरप्रीत रोते हुए उन लाशों से लिपट गये, कुछ महिलाएं उनके करीब आकर उन्हें चुप कराने में लग गईं। इंद्रजीत अपनी माँ से लिपट गया और बोला "ये क्या हो गया माँ, कैसे और किसने किया ये", उसकी आँखें बदले के क्रोध से भरी हुई थीं जो आँसुओं के रूप में बह रही थीं।

"सच्चे बादशाह की सेवा करते हुए तेरे पिता शहीद हुए हैं बेटा, ये फक्र की बात है, शाहजहाँ की सेना से लड़ते हुए उन्होंने और तेरे भाइयों वीरतापूर्वक अपने प्राणों की आहुति दी है, तुझे भी इन्ही की तरह बनना है और इनकी मौत का बदला लेना है", इंद्रजीत की माँ अपने दिल पर पत्थर रखकर कहती है।

" मैं कसम खाता हूँ माँ, शाहजहाँ को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी, मैं मुग़ल सल्तनत की रातों की नींद और दिन का चैन उड़ा दूँगा ", 15 वर्ष का इंद्रजीत अपनी माँ से वादा करता है। धीरे धीरे समय बीतता जाता है, इंद्रजीत और हरप्रीत बड़े हो जाते हैं, दोनों ने मिलकर अपने गांव और आसपास के गांवों के नौजवानो की छोटी टुकड़ी बना ली, जिसका काम शाही ख़ज़ाना और विदेशी व्यापारियों को लूटना था। दोनों ने गुमनामी में रहकर नामुमकिन डकैती को भी अंजाम दिया था। उनके कुछ ख़ास साथियों के अलावा कि‍सी को उनका असली नाम और पता ठिकाना मालूम नहीं था।

समय बीतते देर नहीं लगती और सारे हिन्दुस्तान में उनके दल द्वारा लूट के किस्से फैल जाते हैं और मुग़ल सल्तनत तथा अंग्रेजी हुकूमत के कानों तक भी पहुँचता है। ठीक ऐसे ही ताजमहल और काले ताज की खबर इंद्रजीत और उसके दल को मिलती है। इंद्रजीत अपने दल के साथ शाहजहाँ से पुराना हिसाब चुकता करने के लिए तैयार बैठा था और सही समय का इंतजार कर रहा था, जो बादशाह के सालगिरह का दिन था। अपने साथियों के साथ मुग़ल सिपाहियों के रूप में सालगिरह के मौके पर पहुँचा और देखा ख़ुद औरंगजेब के ख़ास सिपाही ख़ज़ाने का एक बड़ा हिस्सा किले के पीछे के गुप्त द्वार से निकाल रहे हैं, उन्होंने पीछा किया और उस ख़ज़ाने को छुपाने वाली जगह देख ली। एक रात पूरी तैयारी के साथ ख़ज़ाने को लूट लिया और जंगल की ओर चल दिए।

कुछ दिनों बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के कुछ सिपाहियों ने चारों ओर से घेर कर हमला किया, उनका बचना नामुमकिन सा था, पर हरप्रीत ने योजना बनाई और केवल कुछ साथियों के साथ रुककर हिम्मत के साथ अंग्रेजी सिपाहियों का सामना किया जिसमें वह शहीद हुआ, पर उसने इंद्रजीत और बाकी साथियों की जान बचा ली। थोड़े दिनों बाद कमांडर ब्राड शॉ राउडी और उसके शिकारी दल का सामना उससे होता है, कमांडर को मार उसे ख़ज़ाने की गुफ़ा के सामने बर्फ़ में गाड़ कर वह पहाड़ों से नीचे उतरता है, जहाँ उसका सामना एक बार फिर से मुग़ल सल्तनत के सिपाहियों से होता है।

उसे कारागार में डाल दिया जाता है, जहाँ उसे बुरी तरह प्रताड़ित किया जाता है, उसके दाएँ हाथ की दो उँगलियाँ काट दी जाती हैं, पगड़ी बांधने वाले सरदार की पगड़ी की बेज़त्ती की जाती है, उसके बाल और दाढ़ी नोच लिए जाते हैं, उससे बार बार ख़ज़ाने का पता और उसका नाम पूछा जाता है, पर दिल में शाहजहाँ के प्रति नफरत भरे हुए इंद्रजीत की ज़ुबान कोई नहीं खुलवा पाता है। अंत में शेर की तरह जीवन बिताने वाले इंद्रजीत की कारागार में ही मृत्यु हो जाती है।

"मालिक... ओ... छोटे मालिक, आपकी आँखें खुल रही हैं थोड़ा और ज़ोर लगाइए", अनजान आवाज़ सुनकर तनवीर आँखे खोलता है और ख़ुद को फ़ार्म हाउस में पाता है, वो उठने की कोशिश करता है पर सिर में ज़ोर का दर्द शुरू हो जाता है, सिर को हांथों से पकड़ने पर पता चलता है कि पट्टी बंधी हुई है। उसे सब याद आने लगता है, बरसात की वो रात, कमांडर की बात, अचानक होने वाला वो हादसा जो उस रात हुआ था।

वो उस शख्स की तरफ़ देखता है और कहता है "तुम कौन हो और मैं यहाँ कैसे पहुंचा, मेरा तो एक्सिडेंट हुआ था न और अरुण कैसा है, उस लड़की का क्या हुआ जो साथ में थी", तनवीर काफ़ी घबराया हुआ सा था।

वो अनजान शख्स उससे कहता है "मैं इस फ़ार्म हाउस में ही काम करता हूँ, छोटे मालिक, उस दिन भी तो आपके लिए खाना बनाने आया था लगता है आपको याद नहीं है, आपकी गाड़ी जंगल में मिली थी कुछ गाँव वालों को और भगवान की कृपा से उसमें से एक आपको जनता था, सो आप लोगों को यहाँ ले आया, आपको पूरे दो दिन बाद होश आया है, आपके दोस्त और वो लड़की भी सुरक्षित हैं और यहीं पर हैं, बस आपको सिर पर थोड़ी ज़्यादा चोट लगने के कारण कुछ दिनों बाद होश आया है "।

तनवीर उस नौकर की बातें सुनकर सब समझ जाता है। यहाँ तक कि दुर्घटना के बाद उसे अपने पिछले जन्म की कहानी भी याद आ जाती है, अब उसे कमांडर की बातों पर यकीन हो गया था, उसे पता चल चुका था कि इंद्रजीत ही वो लुटेरा था जिसने शाहजहाँ का ख़ज़ाना लूटा था और कमांडर की गर्दन को धड़ से अलग कर दिया था, अब उसे उस तीन सौ साल पुराने इतिहास पर पूरी तरह से विश्वास हो गया था। पर उसे एक बात खाए जा रही थी कि कहीं उसके साथ घटित दुर्घटना में कमांडर का हाँथ तो नहीं था, अगर था तो इसका मतलब यह था कि कमांडर ने उनसे झूठ बोला था कि वह उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएगा। इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए तन्नू इस नतीजे पर पहुँचा कि कमांडर पर इस बात का यकीन नहीं किया जा सकता है कि वह उनकी जान नहीं लेगा, अगर इस हादसे में उसी का हाँथ था तो कमांडर जानलेवा होने के साथ साथ विश्वास करने के लायक भी नहीं है। तनवीर को ये सारी बातें आने वाले कल के लिए आगाह कर रही थीं।
-Ivan Maximus

© All Rights Reserved