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बस मां
शाम को पार्क में बेंच पर बैठे बैठे विधान को देख रही थी ।सारे जहां कि चिंता एक तरफ और विधान की मुस्कान एक तरफ। विधान मेरी तरफ देखे बिना अपने खिलौने से खेल रहा था। अचानक सड़क पर एक इलेक्ट्रिक खिलौना आकर गिरा, और साथ ही बच्चे के रोने की आवाज।
मेरा और विधान का ध्यान स्वत ही उस और चला गया।बच्चा रोते हुए सड़क पार करते हुए पार्क में आ गया और उसकी मां भी उसके पीछे पीछे चली आई। मां ने बच्चे को सहलाते हुए और महंगा खिलौना दिलाने की तसल्ली दिलाई और बच्चा वहीं अपने खिलौने के साथ खेलने लगा।। और उसकी मां भी बेंच पर बैठ कर अपने मोबाइल में व्यस्त हो गई। विधान को उस बच्चे का खिलौना अच्छा लगा वो अपना खिलौना लेकर उसके पास जाकर खड़ा हो गया।उस बच्चे ने भी हंसकर विधान को देखा , विधान वहीं बैठकर खेलने लगा।
मैं बैठे बैठे सोचने लगी आखिर क्यों मैं गरीब हूं और अगर हूं तो मां क्यों बनी जब अपने बच्चों कि छोटी सी ख्वाहिश भी पूरा नहीं कर पाती।
तभी एक बड़ा सा खाली ट्राला धड़ धड़ करते हुए सड़क से गुजरा बच्चे घबरा कर दौड़े।
वो बच्चा अपनी मां से जाकर लिपट गया और विधान मुझसे आकर। अचानक मेरी चन्द्रा टूटी और मेरे हाथ विधान का सिर और कमर सहलाने लगे।
मेरा चेहरा आसमान की ओर उठ गया ,मेरे मन ने कहा बेशक कभी विधान ये समझ जाए कि वो अमीर मां है और मैं गरीब मां, मगर
उसकी मां सिर्फ़ मैं ही हूं।।
मेरे गरीब होने का ग़म मेरे मां होने के दंभ से ढक गया था।