...

11 views

सन् 2020 और अमावस की रात
नमस्कार

आज चौथा दिन है इस साल के अंतिम माह का । ये साल 2020 सबको कुछ ना कुछ सीखा ही गया है । बहुतों के लिए ये साल अमावस की काली रात की तरह भयावह थी । ये अमावस की रात प्रेमचंद की कहानियों में भयानक होती थी अपने घुप्प अंधेरे की कालिमा के वजह से । आजकल बिना पांचांग के तो पता भी नहीं चलता अमावस का परंतु फिर भी साहित्य में इस अमावस की काली रात की भयावहता किसी के भी डर को बड़ी शालीनता से प्रभावशाली तरीके से उकेरती है । अमावस की भयावहता और बढ़ जाती है अगर पवन देव थोड़े ज्यादा व्यग्रता से गतिमान हो जाते हैं । और जब देव की व्यग्रता आस पास के पेड़ पौधे अपने पत्तों की सरसराहट से प्रस्तुत करने लग जाते हैं तो यकीन मानिए फिर उनके पुत्र का नाम ही सहारा दे पाता है भयभीत मन को । परंतु ऐसा केवल किसी अपरिचित स्थान पे ही होता है । अपने घरौंदे के आस पास तो ये सरसराहट संगीत सा सुकून देता है और ये काली रात्रि तो टिमटिमाते तारों की भव्य आकाशगंगाओं की मनोहरता में खो जाने की प्रेरणा बन जाती है ।

खैर ये साल भी रहा अमावस की काली रात की तरह । प्रारम्भ में वस्तुस्थिति से अपरिचित होने की वजह से भयभीत थे और अफवाहों और वैज्ञानिक मान्यताओं में विषमता और अंतर्द्वंद की सरसराहट ने तो चेतना शून्य करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी । पर फिर धीरे धीरे अनभिज्ञता कम हुई और हम वस्तुस्थिति से परिचित होने लगे । और फिर बहुतों के लिए सरसराहट अब संगीत सी बनने लगी है । कुछेक ने अपने चारों ओर विद्यमान अँधेरों के बजाय, सर उठाकर अवसरों के टिमटिमाते सितारों में स्वयं को स्थापित करना प्रारम्भ भी कर दिया है ।

भले हीं 2020 को लोग अभिशापित कहें और किसी बुरे सपने की तरह भूल जाने की कोशिश करे पर इस बात से बिलकुल इंकार नहीं किया जा सकता कि इसने सबको कुछ ना कुछ सिखाया है । व्यक्ति विशेष से लेकर समाज , राष्ट्र और पूरी मानव सभ्यता तक हरेक स्तरों पे इस साल ने विकास के नए मानदंड स्थापित कर दिये हैं । व्यक्ति विशेष की बात करें तो मेरे लिए भी पहले तो ये साल अभिशप्त जैसा ही प्रतीत होता रहा । बहुत कुछ हो गया नाटकीय ढंग से इस छोटे से एक साल के काल खंड में और सबसे बड़ी बात ये साल बिजली सी तेजी से गुजर गया । पर इन सभी के बीच समझा मैंने पारिवारिक महत्व को फिर से एक बार। 2006 से बाहर रहा घर के और इस साल लगभग 6 महीने घर पे व्यतीत करा । बाहर रहते रहते मैं कब दूर हो गए था घर से पता हीं नहीं चला कभी । घर पे रह कर घर के सदस्यों के साथ दुबारा गप्प मारना सीखा और भी बहुत सारी छोटी छोटी व्यावहारिक बातें हैं जो अब भी सीख रहा हूँ । एक ठहराव सा आ गया था जिंदगी में और मैंने स्वयं को लहरों के थपेड़ों के भरोसे छोड़ दिया था, जिंदगी के सागर में । अगर ये साल ना आता तो पता भी नहीं चलता मुझे इस ठहराव का और अपनी अप्रत्यक्ष हार मान जाने वाली मनोदशा का । पर अब लड़ रहा हूँ फिर । थपेड़ों के भरोसे नहीं अब थपेड़ों के ऊपर अपनी नांव निकाल रहा हूँ मैं । हालांकि अभी भी सितारों की ओर देखना बाकी है परंतु देर सबेर कर लूँगा भरोसा हो चला है ऐसा फिर से प्रबल मेरा ।

आप भी सोचना बैठ कर एक बार क्या सिखाया इस साल ने आपको । कोशिश करना कि सरसराहट संगीत में बदल जाए । और हो सके तो एक बार सर उठाकर देखना सितारों को और ढूँढना अपना सितारा जो केवल आपके लिए ही होगा टिमटिमाता सा, अमावस कि रात में ।

शेष शुभ
© Saket