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श्लोक
लालयेत् पञ्चवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्।।

श्लोक का अर्थ:
पांच वर्ष की आयु तक पुत्र से प्यार करना चाहिए, इसके बाद दस वर्ष तक उसकी ताड़ना की जा सकती है और उस दण्ड दिया जा सकता है, परंतु सोलह वर्ष की आयु मे पहुँचने पर उससे मित्र के समान व्यवहार करना चाहिए।

श्लोक का भावार्थ:
विकासात्मक मनोविज्ञान का सूत्र है यह श्लोक। पांच वर्ष की आयु तक के बच्चे के साथ लाड़-दुलार करना चाहिए, क्योंकि इस समय यह सहज विकास से गुजर रहा होता है। अधिक लाड-प्यार करने से बच्चा बिगड़ न जाए, इसलिए दस वर्ष की आयु तक उसे दंड देने की बात कही गई है, उसे डराया-धमकाया जा सकता है, परंतु सोलह वर्ष की आयु तक पहुंचने पर उसके साथ इस प्रकार का व्यवहार नहीं किया जा सकता।

उस समय उसके साथ मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि तब उसका व्यक्तित्व और सामाजिक 'अहम' विकसित हो रहा होता है। मित्रता का अर्थ है, उसे यह महसूस कराना कि उसकी परिवार में महत्वपूर्ण भूमिका है। मित्र पर जैसे आप अपने विचारों को नहीं लादते नहीं है, वैसा ही आप यहां अपनी संतान के साथ भी करें। यहां भी समझाने-बुझाने में तर्क और व्यावहारिकता हो, न अहम की भावना।