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अब क्या होगा..?
सुरेश नरेश आपस में एक अच्छे मित्र होतें है  सुरेश गम्भीर और नरेश थोड़ा मजाकिया होता है।  वे अपने ननिहाल से ट्रेन के द्वारा अपने घर जाना चाहतें थें।
               अक्टूबर का महीना था जब हल्की-हल्की ठण्ड पड़ती है शाम के लगभग  5ः30 बजे थें। नरेश और सुरेश का ननिहाल कस्बे से कुछ दूर लगभग 3 कोश की दूरी पर था। वहाँ से रेल गाड़ी पकड़ने के लिये आते हैं। नगर में पहुँचने पर पता चलता है कि रेलगाड़ी अपने सही समय 6ः50 पर स्टेशन पहुँच  जायेगी। और ऐसे छोटे स्टेशनों पर गाड़िया बहुत कम ही रुकती हैं।  ट्रेन को पकड़ने के लिये नगर की बदहाल सड़को पर तेज़ी से पैदल ही चलतें है। क्योंकि ऐसे मार्गो पर वाहन भी अपने समय से नहीं मिलतें है। स्टेशन से कुछ ही दूर पहुँचने पर उनको रेलगाड़ी के आने की आवाज सुनाई पड़ती है।

सुरेश- चल जल्दी यार नही तो ट्रेन 🚂 छूट जायेगी वैसे भी रात हो चुकी है।🌜
नरेश-अरे रूको यार थोड़ा धीरे चलो चलते-चलते मेंरे पैर थक गये       हैं। अभी ट्रेन नही आयी है यदि आयी होती तो भोपू नही बजता। बहुत समय है अभी आराम से चलो।
सुरेश- तुम बहरे हो क्या अभी आवाज नही सुनी ।
नरेश- अरे वो माल गाड़ी की आवाज थी।
सुरेश- अभी टिकट भी तो लेना है उसमें देखो कितना समय लगता है      भीड़ का तुम्हें अंदाजा भी है।
नरेश - भीड़ होगी तब न।

(तभी ट्रेन की घंटी सुनाई देती है दोनो की धड़कने कुछ बढ़ जाती हैं)

सुरेश- मै कह रहा था न ट्रेन आ गयी दौड़ भाई वरना छूट जायेगी।

(स्टेन से लगभग 300 मी0 की दूरी पर वे होतें हैं जब उनको ट्रेन की घंटी सुनाई पड़ती है आवाज़ सुनकर वे दोनो रेलवे स्टेन की तरफ दौड़ने लगतें हैं । दौड़ते-दौड़ते जब वे स्टेशन पहूँचतें हैं अपनी सांसो को खींचते हुये,  उन दोनों की सांसे अचानक थम जाती हैं वहाँ का नज़ारा देख कर,  वो ये कि जैसा अनुमान था भीड़ कहीं उससे ज्यादा थी । धड़कने और तेज़ हो गयी जब गाड़ी स्टेन पर खड़ी देखा। )

सुरेश- तू यहीं पर रूक और ये बैग पकड़ तब तक मैं टिकट लेकर आता हूँ।
नरेश- अरे-अरे भाई पैसे तो लेते जाओ।

नरेश अपने पैंट की अन्दर वाली जेब से पैसे निकालने की कोशिश करता है तभी

सुरेश-(घबराहट के साथ) अरे जल्दी करो भाई ट्रेन तुम छुड़वा दोगे।
नरेश - निकाल तो रहें हैं क्या पूरी पैंट निकाल दे  (मजाक में)।
       लो 500 रू का नोट
सुरेश- अरे भाई 38-38 का टिकट लेना है तुम 500 की पकड़ा रहे हों।
नरेश- तो पहले काहे नही बताया अब फिर से जेब में हाथ डालो

नरेश के पास टूटे पैसे नही निकलते हैं तो सुरेश वही नोट लेकर कतार में लग जाता है। लगभक 20 व्यक्तियों के पीछे का स्थान मिलता है। भीड़ ठसा-ठस है टिकट लेने वाले काफी परेशान है हल्की ठण्डी में भी पसीना आ रहा है। इधर ट्रेन  के चलने की पहली घंटी सुनाई देती है यात्रियों के साथ सुरेश की धड़कने बढ़ने लगती हैं । कुछ यात्री तो बिना टिकट के ही कतार से निकल जातें है। सुरेश कुछ व्यक्तियों  के निकलते ही टिकट खिड़की से तीसरे स्थान पर आ जाता है थोड़ी राहत की सांस लेते हुये आखिर में सुरेश खिड़की पर पहुँच ही जाता है।

सुरेश - बाबू जी दो टिकट रामपुर की दे दीजिये ( कहते ही 500 की नोट आगे बढ़ाता है।)
टिकट बाबू - 72 रू0 टूटे लेकर आओ 😎
सुरेश -( बिनती करते हुये )बाबू जी टूटा इतनी रात को नही मिला यहाँ,नही तो मैं आपको टूटा जरूर...