...

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मुझे मेरी ही जरूरत है।
मुझे जरूरत है किसी की
पता नहीं किसकी?
पता नहीं क्यूँ?
पता नही कौन ?
मुझे जरूरत है किसी की
जैसे प्यासे को पानी की
जैसे भूखे को रोटी की
जैसे मरने वाले को साँसे की
वैसे ही जरूरत है मुझे किसी की।
जो धुंध में रास्ता दिखाये
जो एक रोशनी मेरे नाम कर जाए
मगर..
..
..
किसकी जरूरत मुझे?
और क्यों?
किस्से कहूं मै?
कौन सुनेगा?
कौन मेरे मरते ख्वाबों को जीवन देगा?
कौन जलती चिता पर सोये मेरे सपने को साँसे देगा?
और क्यूं?
शायद...
...
....
कोई नही है
या कोई हों..
हाँ शायद मुझे जरूरत है खुद की
मुझे ही उठना होगा एक बार फिर
पूरे जज्बे से
पूरे हौसले से
लड़ना होगा फिर
एक लडाई इस जिंदगी से..
मुझे जरूरत है तो खुद के वजूद की
खुद के पहचान की
मुझे ऐसे परिस्थिति में हारना नहीं चाहिए।
मेरी कहानी में मेरा किरदार अहम है,
शायद जितना मैं सोचती हूं
उससे कहीं ज्यादा।
चलो लड़ती हूँ एक और जंग,
खुद के सहारे।
मुझे मेरी ही, जरूरत है।।