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मकर संक्रांति
मकर संक्रांति भगवान भुवन भास्कर की पूजा अर्चना का पर्व है इस दिन सूर्य भगवान धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य भगवान प्रत्येक राशि में एक माह रहते हैं। एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश संक्रमण कहलाता है । ये संक्रमण काल ही संक्रांति है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में बारह राशियां हैं। इस प्रकार प्रत्येक माह संक्रांति आती है किन्तु भारत में मकर संक्रान्ति का विशेष महत्व है

भारतीय खगोल शास्त्र में दो आयन कहे गये है उत्तरायण और दक्षिणायन। प्रत्येक छः छः माह के अन्तराल पर पृथ्वी का झुकाव दक्षिण और उत्तरी गोलार्ध की ओर रहता है। पृथ्वी का ये झुकाव ही आयन कहलाता है
मकर संक्रांति का महत्व इस बात में निहित है कि इस संक्रांति को सूर्य भगवान राशि परिवर्तन ही नहीं करते अपितु आयन परिवर्तन भी करते हैं अर्थात दक्षिण से उत्तरायण हो जातें हैं और सर्दी कम होने लगती है (ये बात अलग है कि मानव ने प्रकृति से इतने खिलवाड़ किये हैं कि अब सर्दी संक्रांति के बाद कम होने की जगह बढ़ने लगी है)

मकर राशि के स्वामी शनि देव हैं। सूर्य भगवान शनि देव के पिता हैं कि इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र से मिलने उनके घर जातें हैं
मकर संक्रान्ति के दिन,५८दिन तक शर शैय्या पर रहने के बाद सूर्य भगवान के उत्तरायण होते ही भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्याग दिए थे
मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी धरती पर अवतरित हुईं थीं और भागीरथ के पीछे पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम में राजा सगर के ६०हजार पुत्रों को मोक्ष देती हुईं, सागर में जा मिलीं थीं।

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© सरिता अग्रवाल