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जिशान का संडे 🙄
इस बार सर्दियाँ जैसे जल्दी ही आ गयी थी हर सुबह जैसे मानो कोई नयी नवेली दुल्हन  ऐसे में देर तक सोने में हाइल होने वाला  सूरज भी  अपनी तपिश में  एक गुनगुना एहसास दे कर किसी चौकीदार की तरह  जागते रहो के बजाए मानो कह रहा  हो "सोते रहों "सात साल का नटखट जीशान  इतवार की इस सुबह जी भर के सोने का ख्वाब लेकर सोया था के तभी घर के अंदर के शोर ओ गुल ने उसके  सारे ख्वाब पर पानी फेर दिए , आज का दिन घर में  रंगाई पुताई का था , इधर उधर होते घर के सामान के बीच जीशान को राहत भरी नींद से जगा दिया गया था दीदी   की शादी के लिए कल मेहमान आने वाले थे । एक दिन पहले वो भी बिलकुल सुबह सुबह इसकी तैयारियों से बेचारा जीशान मन ही मन झल्ला गया था भला कौन समझता उसके स्कूल जाने से बरी देर तक अनूठा एक मात्र सोने का दिन यानी  गोल्डन दे " रोहन झल्ला कर उठा और पैर पटकता हुआ इधर उधर सोने को  मुनासिब जगह ढूंढ़ने के लिए नींदें गवाती हुई पलकों को न चाहते  हुए भी फिराने लगा किचन में सारे सामन बिखरे थे दायी मासी झाड़ू फेर कर दीवारे साफ़ कर रही थी मम्मा  सभी के लिए  सुबह की चाय तैयार कर रही थी, हर जगह आसरा तलाश करने के बाद दीदी का कमरा बाक़ी रह गया था दरवाज़ा खोलते ही जीशान चिल्ला उठा "ओफ्फोन...इधल भी" बेचारे जीशान के जज़्बात को समझने वाला यहाँ कोई नहीं था 
© 0✍️sifar
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