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जो है जैसा है
*"जो है जैसा है - के ज्ञान को समझने की समस्या"*

"जो है जैसा है - के ज्ञान की तथ्यपरक और सत्यपरक समझ की कमी की समस्या का निदान कैसे हो"

प्राय: ऐसा होता है कि बहुत से व्यक्तिगत, परिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय कठिनाइयों के संदर्भ में बहुत से विषयों के बारे में, बहुत सी परिस्थितियों के बारे में अच्छे अच्छे समझदार होशियार पुरुष भी केवल अपनी अपनी व्याख्याओं को करने में ही व्यस्त रहते हैं। उनकी व्याख्याओं में तथ्य तो लोप ही हो जाता है। व्याख्याओं के बाद व्याख्या, निरंतर व्याख्याओं के चक्कर में तथ्य (फैक्ट) का नामोनिशान नहीं रहता है।

इन व्याख्याओं के दुष्चक्र को जरा समझने का प्रयास करें। जिस भी चीज को या जिस भी परिस्थिति को या जिस भी आत्मा को या जिस भी कठिनाई को जब हम देखते हैं (अपने अनुसार समझते हैं) उसको हम उसके शुद्ध रूप में (वह जो है जैसी है) उसके वास्तविक शुद्ध रूप में नहीं देख सकते हैं। उसके शुद्ध रूप में देखना असंभव है। क्योंकि उसमें देखने वाले की दृष्टि (व्याख्या) समाविष्ट हो ही जाती है। जैसे उदाहरण के तौर पर:- एक वृक्ष आपके सामने है। उस वृक्ष को जब कोई भी...