माँ
❣️✍️ माँ, जब-जब ये जगत व्यर्थ लगने लगता था, परिस्थितियों से हताश मन अंधेरे कोने में दूर बैठे आपको याद करता था। आपकी गोद में सिर रखकर सांसारिक चिंताओं से कही दूर सुखद सूकून का अहसास होता था।
आपके अचानक जाने से पुरानी यादों को स्मरण करने के सिवाय कोई विकल्प ही नहीं सूझता! रह-रह आपसे जुड़ी छोटी-छोटी बातें याद आती है और आंखें मूंद उन स्मृतियों का सजीव चित्रण उभर आता है। अब तो मानो, कभी हिचकियाँ भी शायद ही आये, जब आप ही नहीं रहे तो उस तरह याद भला कौन करेगा ? अगली बार गांव से रवानगी पर, पीछे के रास्ते पर इंतजार में बैठ हाथ हिलाने वाला कोई न होगा, गांव आते ही आपसे मिलने वाला अपार स्नेह अब पुनः पाना संभव ही नहीं, वो लाड़-चाव अब भला कहां माँ !
यकायक यूं आपका हमें छोड़ जाना, विश्वसनीय तो नहीं था, पर परम पिता परमेश्वर के आगे हम सब नतमस्तक है। न जाने कितनी ही इच्छाएँ मन में ही दबी रह गयी, दुःख तो इस बात का है लगभग दो माह साथ बिताकर भी कि आपके गंभीर स्वास्थ्य के चलते मन भर आपसे बातें तक ना हो पायी। सोचा करती थी, आपसे व्यवस्थित पांव लगना सीखना है जो पिछली बार आपने मौखिक बताया था, आगे ऐसा करना-वैसे रहना आदि अनेकानेक सीख आप देते ही रहें है। पीढ़ियों की सूची आपके साथ बैठ लिखनी है, और तो और ब्याह के गीतों की आपकी इच्छा पूरी न हो सकी। सब कुछ मन का मन में ही रह गया, माँ ! और आप इस तरह हमें छोड़ चल दिए।
अंतिम समय तक मन में यही आस थी कि, आप पुनः पहले की भांति ठीक हो जाएंगे, कभी स्वप्न में भी आपको खोने का ख्याल ही नहीं आया था। अंतिम समय में आपकी मौन मानो, चीख-चीखकर इस जगत की नश्वरता का आभास करा रही थीं। आपकी पार्थिव देह के पास लगभग आधे घंटे बैठी यही कल्पना करती रहीं, मानो आप पुनः उठ बैठेगीं। चंद दिनों पहले जो हाथ मेरे सिर पर आशीर्वाद स्वरूप था, कहाँ पता था कि अब ये पुनः नहीं उठेगा । अबोध बच्चे सी मैं, रह-रह आपके हाथ को छूती रही जैसे इसमें शायद पुनः जीवन-संचार महसूस हो, पर सब निरर्थक रहा !
ऐसा नहीं है कि, आपके जाने के बाद कुछ भी रूका है, सब कुछ अब भी चल रहा है, मानो जाते-जाते भी आप हमें जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहने की सीख देते गए । पंरतु जीवन रूपी मौसम के हर पतझड़ और बंसत में आपके आर्शीवाद रुपी जल का अभाव सदैव खलेगा । पर साथ ही अब तक हमारी जड़ों में सिचिंत आपका प्रेम सर्वथा मन-मस्तिष्क में सदा ही स्मरणीय रहेगा, माँ !
©Mridula Rajpurohit ✍️
🗓️ December, 2021
#grandparents #love
© All Rights Reserved
आपके अचानक जाने से पुरानी यादों को स्मरण करने के सिवाय कोई विकल्प ही नहीं सूझता! रह-रह आपसे जुड़ी छोटी-छोटी बातें याद आती है और आंखें मूंद उन स्मृतियों का सजीव चित्रण उभर आता है। अब तो मानो, कभी हिचकियाँ भी शायद ही आये, जब आप ही नहीं रहे तो उस तरह याद भला कौन करेगा ? अगली बार गांव से रवानगी पर, पीछे के रास्ते पर इंतजार में बैठ हाथ हिलाने वाला कोई न होगा, गांव आते ही आपसे मिलने वाला अपार स्नेह अब पुनः पाना संभव ही नहीं, वो लाड़-चाव अब भला कहां माँ !
यकायक यूं आपका हमें छोड़ जाना, विश्वसनीय तो नहीं था, पर परम पिता परमेश्वर के आगे हम सब नतमस्तक है। न जाने कितनी ही इच्छाएँ मन में ही दबी रह गयी, दुःख तो इस बात का है लगभग दो माह साथ बिताकर भी कि आपके गंभीर स्वास्थ्य के चलते मन भर आपसे बातें तक ना हो पायी। सोचा करती थी, आपसे व्यवस्थित पांव लगना सीखना है जो पिछली बार आपने मौखिक बताया था, आगे ऐसा करना-वैसे रहना आदि अनेकानेक सीख आप देते ही रहें है। पीढ़ियों की सूची आपके साथ बैठ लिखनी है, और तो और ब्याह के गीतों की आपकी इच्छा पूरी न हो सकी। सब कुछ मन का मन में ही रह गया, माँ ! और आप इस तरह हमें छोड़ चल दिए।
अंतिम समय तक मन में यही आस थी कि, आप पुनः पहले की भांति ठीक हो जाएंगे, कभी स्वप्न में भी आपको खोने का ख्याल ही नहीं आया था। अंतिम समय में आपकी मौन मानो, चीख-चीखकर इस जगत की नश्वरता का आभास करा रही थीं। आपकी पार्थिव देह के पास लगभग आधे घंटे बैठी यही कल्पना करती रहीं, मानो आप पुनः उठ बैठेगीं। चंद दिनों पहले जो हाथ मेरे सिर पर आशीर्वाद स्वरूप था, कहाँ पता था कि अब ये पुनः नहीं उठेगा । अबोध बच्चे सी मैं, रह-रह आपके हाथ को छूती रही जैसे इसमें शायद पुनः जीवन-संचार महसूस हो, पर सब निरर्थक रहा !
ऐसा नहीं है कि, आपके जाने के बाद कुछ भी रूका है, सब कुछ अब भी चल रहा है, मानो जाते-जाते भी आप हमें जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहने की सीख देते गए । पंरतु जीवन रूपी मौसम के हर पतझड़ और बंसत में आपके आर्शीवाद रुपी जल का अभाव सदैव खलेगा । पर साथ ही अब तक हमारी जड़ों में सिचिंत आपका प्रेम सर्वथा मन-मस्तिष्क में सदा ही स्मरणीय रहेगा, माँ !
©Mridula Rajpurohit ✍️
🗓️ December, 2021
#grandparents #love
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