...

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कर्म
एक वैद्य जी थे रोज दवाखाने जाते समय उनकी पत्नी एक पर्ची में सामान लिख कर देती थी। घर में उपयोग की वश्तुएं वैद्य जी दवाखाने में जाकर उतने ही मरिजों से पैसा लेते थे जितना पर्ची में लिखें हुए सामान हो जाए उसके बाद किसी भी मरिज से पैसा नहीं लेते थे। चाहे कितना ही अमीर क्यों न हो ।
एक दिन उनकी पर्ची में सभी सामग्री के नीचे बेटी की शादी का सामान लिखा था। उस दिन अंत तक उनको उतना पैसा नहीं मिला जितना सामाग्री के लिए जरूरत थी। वैद्य जी चिंता मग्न बैठे थे । तभी एक लंबी कार से एक अमीर आदमी वैद्य जी के पास आया। बोला " शायद आपने मुझे पहचाना नहीं ।
मैं पहली बार आया था मेरी गाड़ी खराब हो गई थी। मेंरा ड्राइवर बनवा रहा था। तो मैंने सोचा आपके दवाखाने के छांव में बैठ जाऊं
आपके घर जाने का वक्त था और आप की छोटी सी बेटी खेल रही थी बार- बार आपसे जिद्द कर रही थी घर चल कर खाना खाने के लिए लेकिन आप मेंरी तरफ देख कर सोच रहे थे शायद मुझे कुछ दवा चाहिए इसलिए आप रुके थे तो मैंने सोचा अपनी परेशानी आप को बता ही दुं मेरे बच्चे नहीं हो रहे थे तभी अपने मुझे दवा दिया था। लेकिन आप ने मुझसे मेरे जिद्द करने पर भी पैसे नहीं ले रहे थे । तभी आपका आदमी आकर बोलता है। 'वैद्य जी का पर्ची का खर्चा आज निकल
चुका है ।तब मुझे पता चला कि आप उतना ही पैसा लेते हो जितना आपका खर्चा है। मैं घर जाकर अपनी पत्नी को यह सब बताया तो मेरी पत्नी ने कहा शायद भगवान ने हमारी मदद के लिए भेजा है।
आज मेंरे घर में दो बच्चें है। अपनी बेटी की शादी का सामान खरीद रहा था तो मुझे यहां पर खेलती नन्ही सी बच्ची बहुत याद आ रही थी। तो मैं शादी का एक सामान के साथ एक और लेते जा रहा था।और मैं ये सामान आपकी बेटी के लिए लाया हूं 'यह सब सुन कर वैद्य जी की आंखें भर आई । और भगवान को धन्यवाद किया।

"जो अच्छा करता है उसके साथ हमेशा अच्छा ही होता है।' जैसी करनी वैसी भरनी "
इसलिए हमेशा एक दूसरे की मदद करो क्योंकि न जाने कब किसी का ऊपर वाला बनाकर आपको ऊपर वाला भेज दें।

(दिपिका यादव)




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