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मेरे दिल की बात.. दीवाली और अन्य प्राणी जीवन!
....और उस पर गत वर्ष किन्हीं जगत गुरु ने भी उनके support मे अपने बचपन की दास्तां सुनादी...
and why one should burst fire crackers उनके अच्छे खासे तर्क और वजह दे दिए...
अब तो जो उनको follow नहीं भी करते होंगे वो भी उनके follower बन गए होंगे.... क्योंकि हमारे लिए तो जो हमारी मन की कहे मन की करे वोही गुरु, वोही भगवान पूजनीय...

उनकी अवस्था के व्यक्ती से मुझे ये अपेक्षा नहीं थी...!
उनकी अवस्था का सम्मान करते हुए भी with due respect I criticize what he said in regards to fire crackers and the, reasons he gave why we should burst fire crackers and allow children to burst fire crackers...
(और इस पर गत वर्ष भी मैंने FB पर भी अपने ह्रदय की बात ज़ाहिर की थी...
क्योंकि मैं समझती हूं... चाहें हम कोई सेलिब्रेटी हों या कोई संत महात्मा या महा गुरू... हमें अपने वचन और वाक्यों का स्तमाल बहुत होश में करना चाहिएं...
क्योंकि एक बड़ी भीड़ हमें folllow कर रही होती हैं..
आप जो भी कहते हैं उसका असर एक विराट स्तर पे होता हैं....nagitivly एंड positively.. !
और मैं इनकी इस बात से मैं कतई सहमत नहीं)
हालाकी बहुत लोग मुझसे असहमत भी हों सकते है
उनकी अच्छी बांतों को लेने में दिक्कत नहीं हैं...
जो किसी के हित में हैं या जगत कल्याण के समर्थन में हैं... उन सभी बातों का सह आदर सम्मान 🙏
किंतू जो बात मानने योग्य नहीं हैं वह नहीं हैं!.
चाहें कोई गुरू कहे.. भगवान भी आके कहे...)

उन्होंने कहा " In his childhood.. वो 1 महीने पहले से दिवाली का wait करते थे to burst the fire crackers and Diwali के बाद तक फोड़ ते रहते थे...
and जो लोग suddenly environment को लेके concerned हो गए हैं they should walk to their office And let children enjoy Diwali bursting the fire crackers....
First thing! Is this really possible! It's so impractical in today's time, 20-25 kilometre और कोई उससे भी अधिक दूर दूर नौकरी करता हैं व्यक्ति पैदल जाके नौकरी कर सकेगा.. ? वो एक दिन में office पहुंचेगा भीं...
दूसरी वो अपने जिस बचपन की बात कर रहें हैं
वो कौनसे ज़माने की हैं... तब खाली मैदान हुआ करते थे... ऐसी जगह थी जहां आप किसी को आहत करे बीना पटाके जला सकते थे...!
और environment भी तब कुछ और ही था... उतना फ़र्क नहीं पड़ता था...
तब भी मैं पटाखे फोड़ने को सही ठहरा रहि हूं ऐसा नहीं हैं.. ऐसा काम करना ही क्यों जिससे किसी को नुकसान हों...ऐसे मनोरंजन के साधन की क्या वाक्य हमें या हमारे बच्चों को ज़रूरत हैं?
हम कैसे बच्चें निर्मित कर रहे हैं... ऐसे संवेदनहीन की तुम्हारे मनोरंजन के कारण किसी का जीवन नर्क बन जा रहा मगर तुम मौज करो.. अपनी मौज में रहो...
wow!!!
आध्यात्म तो रास्ता ही मन के परे का हैं..
तो कल हम ऐसे बच्चों से कैसे प्रेम की, समझ की ...बोध की .. सजगता की अपेक्षा रख सकते हैं....?
फ़िर तो वो आतंकवादी भी गलत नहीं हो जाते जिन्हें बचपन से bomb और बंदूकों से खेलने को बोला जाता हैं फिर बड़े होके वे आतंकवादी बनंगे ना...
जैसी शिक्षा बचपन में होगी...
वैसे ही बड़ा मानुष हम expect कर सकते हैं....
ये बच्चे जो इतने संवेदनहीन रह जाएंगे ये physicaly किसी को harm ना भी करे तो जिसके जीवन में भी जाएंगे वहा दुसरे को mentaly torture ही करेंगे

और आज लगभाग हर साल हम न्यूज में देखते हैं के दीवाली की पश्चात Delhi की आवाहो हवा ज़हरीली सी हो जाती हैं... लोगों का सांस लेना मुश्किल हो जाता हैं घर से निकलना मुश्किल हो जाता हैं
जैसा कि न्यूज की जानकारी के अनुरूप
मैं वहा नहीं रहती तो निजी तौर पर वहां की जानकारी नहीं मुझे किंतू ये लगभग प्रतेयक वर्ष का news हैं और यदी ये यथार्थ मे सत्य है...
इसका उत्तर हैं उनके पास...!
के इसका क्या किया जाए...?
अब भी वे Fire crackers को सही ही कहेंगे ....???
अच्छा वो छोड़े...
कितने घर, public places पर आग लग जाति हैं... हर साल...
लोगों को फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि वो उनका घर नहीं
उनकी निजी संपत्ति नहीं.... उनका pocket का कुछ नही गया....
मगर क्या आप उत्तर दे सकते हैं....?
हर साल वे जो लोग स्वास के रोगी हैं..
या कई अन्य तरह के रोगी हैं...
घर के बूढ़े हैं....
और वो ... जो कुछ एक आद दिन से लेकर महीने और साल भर के बच्चे हैं... वे उन ध्वनियों को सहन कर पाते हैं...?
दिवाली के वो कुछ दिन एक नूतन मां और एक नूतन शिशु के लिए कितने मुश्किल भरे हो जाते हैं...
क्योंकि जब बच्चा परेशान होता हैं तो और कोई नहीं मगर मां परेशान हो जाति हैं....
रात भर बच्चा भी नहीं सो पाता और मां भी नहीं...
हर बार बमs की इतनी ज़ोर ज़ोर की आवाज़ों से वो कांप उठता हैं बच्चा...
क्या उसके नन्हे कानों के लिए, नन्हें लंग्स.. नाज़ुक स्वासों और सेहत के लिए अच्छा हैं....?
मेरा आंखों देखी हैं तो ये तो मैं दावे के साथ कह सकती हूं
अच्छा हैं के मेरे गांव में इस तरह की दीवाली नहीं मनाई जाती और जब भी पापा गांव से लोट ते हैं कहते हैं गांव में उनकी सेहत आपो आप ठीक हो जाती हैं...
जबकि काम का वहा बहुत load हैं...
खैर....
आते जाते रास्ते में महज़ पटाको के कारण कितनी दुर्घटनाएं हों जाती हैं....
अभी कुछ दिन पहले की बात हैं...
अभी तो दिवाली आई भी नही मैं मेरे घर से ही walking distance पर एक shop को जा रही थी मेरे घर से ही थोड़ी दूरी पर ही बिच में जहां एक curvey turn आता हैं जिसके cornor पे ही एक घर हैं वहा दो बच्चे पटाखे जला जला कर रास्ते में फेंक रहें थे..फटाके बड़े नही थे छोटी वाली मिर्ची बॉम्ब ही थे...
मैं तो नहीं जानती .. मैं तो एक normal राही की तरह जा रहीं हूं रास्ते से...
अचानक जैसे ही मैंने उस turn पर दूसरा पांव रखा
कुछ चिंगारी सा मेरे पैर के गर्त और चपल के बीच गिरा मैंने झटके से वो जो भी था तुरन्त फेंका और वो तुंरत फूट गया by any chance मैं नहीं देखती...
मैं झटके से उसे नहीं फेंकती तो वो मेरे पैर में फूटता....
मेरे लिए तो और मुस्किल हो जाता ...
क्योंकि मैं भुक्तभोगी हूं ... मैं जानती हुं इसका असर...
अचानक यह लिखते हुए कुछ बात याद आ रही हैं recently लगभग 15-20 दिन पहले मुंबई airport में बैठ मैं कुछ लिख रहि थी जिस लेख को फिर घर आकर पुरा किया....
जिस पर मैं इस बात पर विचार कर रही थी
flight से जब भी सफ़र करना होता मेरा भय उस 10 से 15 ...20 minute के लिए जो कान में असहनीय दर्द होता हैं उससे रहता हैं... किंतू उस छन विचारों में मेरा आश्चर्य इस बात पर था बचपन में तो मुझे कभी भी flight के सफ़र में कान में दर्द न हुआ हुआ... एक आद बार vomiting feel हुआ for Which they used to provide bags to vomit... तो वो दिक्कत ना था
But कान में तो कभी दर्द ना हुआ फ़िर अब क्यों ऐसा..?
क्या कान भी वक्त से पहले बूढ़ा हो गया हैं...
मगर अब ये लिखते हुए खयाल आता हैं...
के मेरे कान में पटाका फूट गया था...
बात वैसी ही थी
"खाया पिया कुछ नहीं glass तोड़ा बारह आना...."🤦‍♀️
मैं फूल जड़ी, अनार या चकरी के सिवा यूं भी कोई खास पटाखे नहीं फोड़ती थी...
मगर किसी और बच्चें की करतूत की सजा मेरे कानों को मिली मैं दियों के पास बैठी थी...
और वो दूसरा बच्चा मेरे पास मे जानें दिए और पटाखे उसके मसाले के साथ पता नहीं क्या खेल खेल रहा था वो सीधा जाके मेरे कान में फूटा ... और मैं सीधा जाके bed पे और वो जो दर्द था मैं बता नहीं सकती...
अब यह लिखते लिखते खयाल आया मुझे मेरे उस flight वाले प्रश्न का ... may be this could be the reason....
because सारे लोग तो इतने आराम से बैठे होते हैं flight में एक मैं ही इतना परेशान होती हूं दर्द से....
खैर ये तो चलो पुरानी बात हुई....
मगर उस दिन...नहीं मैं इतनी कोई घबराई नही...
जितना मैंने लिखा हैं मैंने छन भर को सोचा महज़ सोचा..घर में एक दिन को भी यदी हस्पताल में रहना पड़ता तो ... उपर से मेरे दो बच्चे हैं (kitties 😺 😺) उनको कौन देखता...?
क्योंकि seconds भर की देरी थी वरना वो मेरे पैर में ही फूटता... ठीक हैं ऐसा नहीं हुआ क्योंकि ऐसा नहीं होना था ...!
किंतू मेरे जगह कोई और भी हो सकता था...
हम इतने insensitive बच्चे निर्मित कर रहे हैं...
मत बोलो के बच्चे हैं... बच्चें तो बच्चें हैं...!
आप जो बच्चपन मे होते हो वोही बड़े होकर भी रहते हैं...
ऐसे ही बच्चे बड़े होकर रूस यूक्रेन करते हैं... और इजराइल मे जैसे हमास, दंगा फसाद करते हैं... महज़ अपनी इच्छा पूर्ति या ego satisfaction के लिए
नहीं मैं यहां धर्म की कोई बात नहीं कर रहीं...
मेरा कहना हैं...
किसी मे यदी हमें समझ, प्रेम संवेदशीलता विकसित करनी हों तो हमें बचपन से ही इसके बीज बोने होते हैं..
बड़े होने की सख़्त ज़मी पर कोई नूतन बीज नहीं उगते.
किसी भी तरह के बीज के उगने के लिए बचपन की नर्म भूमि चहिए.... अथवा बच्चा मन होना चहिए...भला बीज हों या बुराई का बीज...
वे सभी बचपन को ही target करते हैं...
इसीलिए फिर कुछ धर्म के so called ठेकेदार बचप्पन से ही उनके so called तालीम देने में मानते हैं...
ताकि उनकी अपनी बुद्धि, अपनी समझ अपना बोध विकसित ही ना हो सके...
उसी का तो परिणाम आज इजराइल गाज़ा का युद्ध हैं...
किंतू हिंदू ख़ोज का पथ हैं...!
किंतू हालाकी यहां भी मैं बहुत जड़ता देखती हूं...
क्योंकि ख़ोजता कौन हैं परमात्मा को ..सत्य को?
क्योंकि उसे खोजने पर तो सबसे पहले अपने आप की असली सूरत से सामना होगा...
भीतर जो आइना हैं... वो तो तुम्हें अपना सब छलावा दिखा देगा...
इसीलिए हम सस्ते पुजा पाठ में ही खुश रहते हैं...
खैर....
मैं उन बच्चों के पास गई और मैंने कहा उनसे
"क्या करते हो बच्चो"
"वो अभी मेरे पैर मे फूटता "
उतने में उनके चाचा आए... जो मुझे जानतें थे
उन्होंने डाटा उन्हें , बोले सुनते नहीं ये...
पर प्रश्न ये..
पटाखे लाके देने वाला कौन हैं उन्हें...!

खैर ये भी बात हम छोड़ देते हैं ऊपर की सारी बातें हम छोड़ देते हैं...
इन दिनों पशु पक्षियों को जो परेशानी होती हैं अकारण!
हमारे कारण !
महज़ हमारे बेकार के मनोरंजन के करण!
देखो कोई मर जाएं ना वो अलग बात हैं....
मर जाए तो मर जाएं मुझे फ़र्क नहीं...
मगर कोइ जीते जी तड़पता रहे, इस बात से मुझे फ़र्क पड़ता हैं....!
मेरे दिल से जो दर्द की कटारी गुज़रती हैं
उसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकतीं

कोइ जीते जी तड़पता रहे...ये सजा हैं...!
और उन निर्दोषों को किस पाप की सजा तुम देते हों...
उनका जीवन तो अपने आप में सजा सा हैं...
तकलीफों से भरा हुआ हैं
मेरे घर के यहां तो देखती हूं...
पटाकों के कारण कितने traumatic हो जाते हैं..
हर जगह छिपने की जगह ढूंढते हैं मगर कहां छिपे रास्ते में तो हर जगह bomb ही फट रहे होते...
कितने पशु तो mental trauma में चले जाते हैं...
कई कुत्तों का बंब के आवाज़ों से डर के मारे brain And nurvous system damage हो जाता हैं...
ख्याल रहें उनके senses हमसे कई गुणा अधिक sensitive हैं...
और उनकी सुनने की छमता हमसे कई अधिक..!
जब बम की आवाज़ें हमारे कानों में ऐसा असर करते हैं
तो उनके कानों पर क्या असर छोड़ जाते होंगे!
इन सब की भरपाई कौन करेगा...?
हमनें इनसे इनका घर छीन लिया जंगल
पानी की व्यवस्था छीन ली... नदी तालाब..
भोजन छीन लिया...
जैसे तैसे हमारे सड़े गले फैंके हुए टुकड़ों पर जीते हैं...
उस पर भी हे मनुष्य तुझे सुकून नहीं...
जीते जी उसका जीवन छीन लिया...
तकलीफों की पहले ही कमी नहीं थी और उनके जीवन और दर्द और तकलीफ़ से लाद दिया...?
हे मनुष्य इतने कर्म का बोझ लेके तुम जाओगे कहा?

और उस पर..हर साल दिवाली में...
कितने पशुओं का कैसी कैसी हालत में videos सामने आते हैं जिसमें किसी का आधा मुंह फट के बाहर लटक रहा होता हैं
आधा खोपड़ी निकल गया... होता हैं...
न जाने क्या क्या... फिर भी तुम बाज़ नहीं आते
और अपने लिए सुखी संसार की कामना करते हो...!
आशचर्य!
मिलेगा तुम्हें... सुखी संसार ...? कभी नहीं!
और जो मिला हुआ हैं वो भी वक्त आने पर देर सवेर छीन जाएगा ...
फिर रोओगे हमनें किसी का क्या बिगाड़ा था...
किन्तु कर्म किसी का पीछा नहीं छोड़ता ...
कर्म ही निर्माता हैं तुम्हारे जीवन का....
कहीं देखती हूं....
किसी गाई की आंख मे पटाखे की चिंगारी जाने के कारण उसकी एक आंख ही लटक के बाहर आ गई कितने दिन वो दर्द मे घूमता तड़पता भटकता रहा और rescuers को जब पता चला तो वे उन्हे अपने संस्था ला इलाज किया मगर वो एक आंख से जीवन भर के लिए तो अंधा हो गया और उस तड़प का क्या जो इतने दिन दर्द मे उसने झेले ...
ये तो रिस्क्यूर्स reacue कर पाते हैं उनकी बात हैं
सभी तक क्या वे पहुंच पाते होंगे...?
जानें कहा कहा खुद अकेले उस दर्द मे अकेले भटकते हुए तड़पते हुए जी रहे होंगे.... ये निर्देश जीवन...
क्या तुम अपने किसी को ऐसी हालत में देख सकोगे?
और क्या होगा यदि ये तुम्हारे साथ हों...
तब दुनियां भर को कोसोगे...
जैसे ukrain वाले...
और
philistine वाले अब कोसते हैं जब बात उन पर आई

अपनी आत्मा से पूछना कभी...
और जिस गाई का दूध पीके तुम बड़े हुए
मलाई माखन पनीर बड़े चाव से खाते हों..
जिन पशुओं की जमीन छीन तुमने अपना घर बना लिए...
जिनका जीवन already कठिन हैं... चंद seconds के तुम्हारे खोखले मनोरंजन के कारण जिनका जीवन तुम नर्क कर देते हो क्या तुम्हारी दिवाली फलित होगी...?
नहीं होगी ....
क्या तुम्हारे घर लक्ष्मी आएगी...?
नहीं आएगी...
आएगी भी तो काली रूप में तुम्हारा काल बन कर!
ये मैं नहीं तुम्हारे कर्म बोलते हैं,
कर्म ऐसे तीर हैं जो कभी खाली नहीं जाते हैं, ठीक निशाने लगते ही हैं!
और वे गुरु जन इस पर क्या कहेंगे...?
जो इंसानों के बच्चों के मनोरंजन के प्रति इतना संवदेनशील होने की बात कहते हैं...
क्या हमारी स्वेदनशीलता महज़ इंसानों के बच्चों के प्रती ही हैं ... ?
बाकि किसी जीवन का कोई मोल नही...?
मैं again बोल रही हूं मैं पशु के मरने की बात नहीं कर रही..
क्योंकि फिर कहेंगे slaughter houses में रोज इतने पशु मरते हैं...
मैं कहती हूं मारना हैं तो सबको साथ मे मार ही दो
वे केरला वाले ठीक ही कर रहे हैं ना...
सब पशुओ को मारदो...
इस धरा पर महज़ इनसान रहे क्योंकि हम ना पेड़ पौधे चहिए ना पशु पक्षी हमे महज हमारे मनोरंजन के साधन चहिए....
(वो हमारे पड़ोसी एक हमारे घर के पेड़ पौधों को काटने की बात करते हैं क्योंकि मच्छर आते हैं और बड़े पुजारी लोग हैं ये...)
( उधर हमारे एक tenant बंदर आते बोलके घर के सामने के सहजन के पेड़ को काटने की बात करते हैं और उनके बच्चे डॉक्टरी पढ रहें हैं... ये बनेंगे देश के doctor...🤦
ज़रा सी परेशानी पर अच्छा खासा सहजन का पेड़ काटने को बोलते हैं... ये भी ज़रूरत से ज़्यादा पूजा पाठ वाले लोग हैं...., ऐसे लोगों के कारण ही लोगों का पूजा पाठ से मन उठ जाता हैं...
खैर दीप असल पूजा दीप कर्म को मानती हैं अपने मन व हृदय को मंदिर और प्रेम को परमात्मा... इतना ही उसका धर्म हैं और इतने में इस उसका सारा आध्यात्म!)
मैंने कहा आंटी को ...
आप कहते हैं बंदर आते हैं पेड़ कटवा दो..
वहा मेरे बाजू वाले बोलते हैं मच्छर आते हैं.. पेड़ कटवा दो...
मैंने कहा एक काम करना..
मच्छर और बंदर से बच लेना oxygen से मर जाना...
और फिर यहीं corona वाला रोना आएगा तो सरकार ज़िम्मेदार!
oxygen cylinder नहीं मिले तो सरकार जिम्मेदार...
अरे oxygen cylinder मे भरने के लिए भी तो oxygen चाहिए....

और उपर से ये गुरू जन तो बडा save soil save soil करते हैं..
and save cow because उसका गोबर धरा के लिए बहुत ज़रूरी हैं....
क्यों?
क्योंकि गाई हमारे कामकी हैं !
इसका घी आयुर्वेद की प्रमुख औषधि हैं...
इसके दूध दही बीना शिवलिंग की पूजा भी अधूरी हैं...
जो गाय के persmision के बीना हम भगवान को चढ़ाते हैं...
मैं जानती हुं मेरी ये बातें बहुत को अच्छी ना भी लगे...
किंतू फिर भी मुझे अपने दिल की बात रखने का अधिकार हैं क्योंकि मैं आहत होती हूं..
और रहि बात आध्यात्म की आध्याम तो सजगता का पथ हैं... संवेदनशीलता का पथ हैं
और बच्चो को पटाखे दे कर आप उन्हे बेहोशी में नही ढकेल रहे...
बच्चा बड़ा होके वोही बनता हैं जो वो बचपन मे होता हैं...
और मेरे खयाल से बच्चे समझदार होते हैं किंतु अगर हम उनकी नासमझी को पोषित करेंगे वह बडा हो वोही होगा और वही करेेगा ....

मैं समझती हूं मेरी कई बात कइयों को ना भी अच्छी लगे...
और हो सकता हैं मैं गलत हूं, किसी दृष्टि से..
या
शायाद पूरी तरह से गलत हूं....
और यदी मैं गलत हूं मुझे अपनी गलती मानने में ज़रा आपत्ति नहीं....
किंतू कोई समझदार व्यक्ती आके मुझे गलत साबित कर जाए..
मेरे प्रश्नों के उत्तर दे मुझे गलत साबित कर जाएं...
शायद मेरे ही जीने के तरीके में और जीवन को देखने के तरीके मे कोई कमी हों...
संसार का जीने का तारिका ही सही हैं!
तभी तो मैं ख़ुद को alien कहती हूं....!
मुझे खुशी होगी यदी कोई मुझे जगत की ये दरिया दिली समझा जाए... मुझमें विराट स्वीकार भाव हैं..
मैं अपनी भूल मान लूंगी ... सत्य को स्वीकार लुंगी
मगर कोई मुझे उत्तर तो दे जाए!
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