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एक छत के नीचे
मैं रोहन । आज मुझे ऑफ़िस के बाद ग्रीन हाउस होटेल जाना था इसलिए मैं अपनी बाइक से जा ही रहा था कि, तेज़ बारिश शुरू हो गई । तब बारिश से बचने के लिए आसपास अपनी बाईक रोक कर मैं एक छोटे से बुक स्टोल के पास खड़ा हो गया । मेरे साथ ही दो-तीन और लोग भी बारिश से बचने वहां आ पहुंचे ।
मेरी ही तरह बाकी सब लोग बारिश से परेशान थे । एक आंटी जी को अपनी महंगी साडी भीगने की चिंता थी । एक अमीर शख्स अपने नए जूते ख़राब होने से परेशान था । एक लड़की जिसे अपने सेट करवाए हुए बालों की चिंता थी।
"ये बारिश भी... इसे भी अभी बरसना था! मुझे हमारे क्लाइंट से मिलना है। जब देखो तब काम के समय ही मुसीबत बढ़ाती है।" मैं मन हीं मन बारिश को कोस रहा था । मेरी ही तरह बाकी लोग भी यही कर रहे थे ।
कुछ समय बड़बड़ाने के बाद मैं शांत होकर चुपचाप बारिश रुकने का इंतजार करने लगा । उसी वक़्त मेरी नज़रे बुक स्टॉल वाले चाचा की छोटी सी बेटी पर गई, इतनी तेज़ बारिश में भी वो बहोत खुश थी ।
वो छोटी सी बच्ची बार-बार छत के बाहर अपना हाथ निकाल रही थी । उसके बाबा उसे मना कर रहे थे । पर उसे तो ऐसा करने में मज़ा आ रहा था । वो अपनी छोटी सी हथेली में बारिश का पानी जमा कर रही थी । उसे पी रही थी ।
और तब उसे देखकर मुझे एहसास हुआ कि, हम बड़े लोग कितने नाखुश, दुखी और नासमझ थे । उस छोटी सी बच्ची को इस बारिश से कोई शिकायत नहीं थी । क्योंकि वो तो इस पल का मज़ा ले रही थी । उसमें दिलचस्पी ले रही थी । उसे गिला होने में या भीगने में कोई परेशानी नहीं थी । क्योंकि वो जानती थी कि, उसके कपड़े गिले होने से ज़्यादा उसे भीगने में मज़ा आयेगा । उस प्यारी सी छोटी बच्ची ने मुझे बहोत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया ।
उसे हंसते-खेलते देख मैं भी अपनी थकान भूलने लगा और मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई । तब अचानक वो बच्ची खेलते हुए मुझे देखकर मुस्कुराई और मुझ पर पानी फैंका । जिस पर उसके बाबा ने उसे डांटा । पर अगले ही पल उन्हें रोकते हुए मैं भी उसके साथ भीगने का मज़ा उठाने लगा ।
मुझे देखकर मेरे साथ खड़े लोगों ने पहले थोड़े मुंह बनाए । लेकिन कुछ समय बाद वो भी हम में शामिल हो गए । और उस प्यारी सी बच्ची के साथ सब ने खुलकर भीगने का मज़ा उठाया ।

Moral of the story:- ठीक इसी तरह कभी-कभार हालात हमारे बस में नहीं होते। लेकिन उसकी शिकायत करते रहने से अच्छा है उसका हल निकाले या उसे अपना ले। हर पल नया है और हर पल को खुलकर जीना चाहिए। फिर पता नहीं कल समय मिले या ना मिले।

© B. Talekar
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