मृत्यु पर नज़र...
क्या कभी तूने अपनी मंज़िल खोजने की कोशिश की... या अभी भी है जो अंदर अंदर प्यासा है..... जो सब कुछ होने के बाद भी तुझे अधूरा होने का एहसास कर रहा है..... कोई ऐसी पीड़ा का अनुभव जो कभी खत्म ही नही होता.... खोज रहा है शाँत होने का तरीक़ा... जो मानसिक विचारो से मुक्ति दे दे.... तो ये लेख तेरे लिये है..... ये लेख उसके लिये है जिनके जीवन मे रस खत्म हो गया है.... जिसके जीवन मे आनंद समाप्त हो गया है..... इस लेख मे कुछ सूत्र है जो इन्हे अपना लेगा... उसके जीवन मे कोई दुख ना रहेगा.... ये लेख सिर्फ उनके लिये है जिन्हे अपने अस्तितव की तलाश है..... मंज़िल की तलाश है.... तो आओ शुरू करते है मंज़िल के सफर मे मृत्यु पर नज़र बनाते हुये एक नयी रहा की.... ये रहा असान भले ना हो.. क्योकी कुछ भी छोड़ना बहुत मुश्क़िल होता है.... मगर मंज़िल को वो ही पा सकेगा जो जीवन को छोड़ना सीख लेगा... जिसने छोड़ना सीख लिया.... उसने सब कुछ सीख लिया...... तो आओ छोड़ना सीखे..... छोड़ने के लिये सबसे ज़रुरी चीज़ है नियम.... आप छोड़ भी तभी सकते है जब आपके पास कुछ पाने को हो...
तो आओ तलाश करे की हमने क्या खोया...... और हम क्या पा सकते थे..... इसके लिये थोड़ा सा समझने की ज़रुरत है..... जो हम समझना नही चाहते है...... तो आइये थोड़ा सा सजग हो जाये और इस लेख पर शाँत होकर विचार करे........इस लेख को पड़ने के लिये हो सके तो कोई ऐकान्त स्थान चुने...
यही इसी पल से जो अभी आगे लिखा है उस पर आपको काम करना है और सत्य का अनुभव करना है.......
यहाँ क्रम वार से कुछ सूत्र लिखे है जो आपको मृत्यु पर नज़र बनाने मे सहायक़ होंगे...
सूत्र एक...... सबसे पहले अपने शरीर को थोड़ा सा शाँत करे.....
सूत्र दुसरा.... अब अपने मानसिक विचारो को थोड़ा सा शाँत करे.....
जब आप ये दोनो काम कर ले.... उसके बाद आप बस खुद को एक विचार पायेंगे...... इस दुनियाँ से अलग....... खुद से मुक्त..... यहाँ से शुरू होती है मृत्यु पर नज़र की खोज..... यहाँ से शुरू होती है मंज़िल की यात्रा..... जरुरी नही की हर मुसाफिर की मंज़िल परमात्मा हो राम हो कृष्ण हो जीसस हो नानक हो बुद्ध हो... उस व्यक्ति की मंज़िल अपनी व्यक्तिगत भी हो सकती है....बस ज़रुरी है अपने मन की मंज़िल... और मंज़िल तक जाने का रस्ता जो मृत्यु के द्वार से हो कर जाता है....
सूत्र तीन... अब यहाँ से आपको अपने विचार मे शमशान जाना है... और वहाँ एक दम पागल व्यक्ति की तरहा शाँत होकर बेठ जाना है..... और ध्यान रखना है वहाँ होने वाली घटना पर.... जो भी वहाँ घट रहा है बस एक नज़र रखनी है..... आपको नज़र रखनी है उस व्यक्ति की मृत्यु पर प्रीतीक्रिया देने वालो पर... सेकड़ो आते है शमशान मे आच्छे बुरे राजा रंक अमीर गरीब ऊँचा नीचा..... शरीर सबके एक से है... जलना सबको उस लकडी से है..... बस अलग है तो हर एक के प्रती विचार.... आपको उन विचारो पर प्रतिक्रिया नही देनी है... सिर्फ मौन रह कर उनमे से अपने लिये विचार चुनने है जो हमे अपने लिये पसंद है.....
कल्पना किजीये की ये दस मिनट उस शरीर की जगह आप है....जो चिता पर अपने अस्तित्व को समाप्त करके जा रहा है.... और वहाँ आपके संबंधियो की प्रतिक्रिया क्या है....चलिये अब थोड़ा सा और आगे चलते है... अगले दिन उनकी प्रतिक्रिया आपके लिये क्या है... और चार पाँच दिन की कल्पना किजीये... फिर आप अपने अंदर की बुराई को दूंढ पायेंगे..... अपने अस्तित्व को देख पायेंगे.... और जो रस्ता आपको आपकी मंज़िल की और ले जायेगा.... वो आपको मिल जायेगा.... बस रहेगा तो उस रहा पर चलने का साहस.....
आज के लिये ईतना ही.... ईतना सीख लोगो फिर किसी के सहारे की ज़रुरत ना होगी....
तो आओ तलाश करे की हमने क्या खोया...... और हम क्या पा सकते थे..... इसके लिये थोड़ा सा समझने की ज़रुरत है..... जो हम समझना नही चाहते है...... तो आइये थोड़ा सा सजग हो जाये और इस लेख पर शाँत होकर विचार करे........इस लेख को पड़ने के लिये हो सके तो कोई ऐकान्त स्थान चुने...
यही इसी पल से जो अभी आगे लिखा है उस पर आपको काम करना है और सत्य का अनुभव करना है.......
यहाँ क्रम वार से कुछ सूत्र लिखे है जो आपको मृत्यु पर नज़र बनाने मे सहायक़ होंगे...
सूत्र एक...... सबसे पहले अपने शरीर को थोड़ा सा शाँत करे.....
सूत्र दुसरा.... अब अपने मानसिक विचारो को थोड़ा सा शाँत करे.....
जब आप ये दोनो काम कर ले.... उसके बाद आप बस खुद को एक विचार पायेंगे...... इस दुनियाँ से अलग....... खुद से मुक्त..... यहाँ से शुरू होती है मृत्यु पर नज़र की खोज..... यहाँ से शुरू होती है मंज़िल की यात्रा..... जरुरी नही की हर मुसाफिर की मंज़िल परमात्मा हो राम हो कृष्ण हो जीसस हो नानक हो बुद्ध हो... उस व्यक्ति की मंज़िल अपनी व्यक्तिगत भी हो सकती है....बस ज़रुरी है अपने मन की मंज़िल... और मंज़िल तक जाने का रस्ता जो मृत्यु के द्वार से हो कर जाता है....
सूत्र तीन... अब यहाँ से आपको अपने विचार मे शमशान जाना है... और वहाँ एक दम पागल व्यक्ति की तरहा शाँत होकर बेठ जाना है..... और ध्यान रखना है वहाँ होने वाली घटना पर.... जो भी वहाँ घट रहा है बस एक नज़र रखनी है..... आपको नज़र रखनी है उस व्यक्ति की मृत्यु पर प्रीतीक्रिया देने वालो पर... सेकड़ो आते है शमशान मे आच्छे बुरे राजा रंक अमीर गरीब ऊँचा नीचा..... शरीर सबके एक से है... जलना सबको उस लकडी से है..... बस अलग है तो हर एक के प्रती विचार.... आपको उन विचारो पर प्रतिक्रिया नही देनी है... सिर्फ मौन रह कर उनमे से अपने लिये विचार चुनने है जो हमे अपने लिये पसंद है.....
कल्पना किजीये की ये दस मिनट उस शरीर की जगह आप है....जो चिता पर अपने अस्तित्व को समाप्त करके जा रहा है.... और वहाँ आपके संबंधियो की प्रतिक्रिया क्या है....चलिये अब थोड़ा सा और आगे चलते है... अगले दिन उनकी प्रतिक्रिया आपके लिये क्या है... और चार पाँच दिन की कल्पना किजीये... फिर आप अपने अंदर की बुराई को दूंढ पायेंगे..... अपने अस्तित्व को देख पायेंगे.... और जो रस्ता आपको आपकी मंज़िल की और ले जायेगा.... वो आपको मिल जायेगा.... बस रहेगा तो उस रहा पर चलने का साहस.....
आज के लिये ईतना ही.... ईतना सीख लोगो फिर किसी के सहारे की ज़रुरत ना होगी....
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