पुर्नविवाह
नंदिता बचपन से बड़ी नटखट थी।शरारतों से पूरे घर को परेशान कर देती ।हर कोई उसे डाँटता फिरता ,पर सबकी लाडली भी बहुत थी। देखते ही देखते कब बड़ी हो गई पता ही नही चला। घर में रिश्ते की बात होने लगी थी ।पर जितने भी रिश्ते आते वो कोई न कोई बहाना बनाकर मना कर देती।सब जब शादी को लेकर जोर डालने लगे तो उसने बताया कि वो किसी लड़के को पसंद करती है और उसीसे ही शादी करना चाहती है।
सुनील एक साधारण से परिवार से था अच्छा खासा कमा लेता था। और बहुत ही गुनी था वो नंदिता को बहुत प्यार करता था और उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता था ।
किन्तु नंदिता के परिवार वाले उसे अपना ने के लिए तैयार नही थे। पर नंदिता भी ज़िद पर अड़ी थी और उसने घरवालों को बिना बताए चुपचाप शादी कर ली। वो दूसरे शहर में रहने चली गई और घरवालों ने भी नंदिता से सारे रिश्ते तोड़ लिए।
सब कुछ सही चल रहा था नंदिता भी सुनील के साथ बड़ी खुश थी पर एक रंज रहता था कि काश परिवार वाले भी उसको अपना लेते।साल पर साल बीत रहे थे , और नंदिता अब पेट से थी ,सुनील भी उसकी बड़ी देखभाल करता था। एक दिन जब वो काम से घर लौट रहा था उसका एक्सीडेंट हो गया और वो चल बसा। नंदिता पर तो मानो आसमान टूट पड़ा । वो गुमसुम सी अकेली पूरा दिन बैठी रहती और अपने बच्चे के बारे में सोचती रहती।परिवार से तो पहले से ही कोई नाता न था ।और अब कोई कमाने वाला भी नहीं ,ऐसी हालात में उसे काम पर भी कोई रख ने को तैयार नही थे। और दिन ब दिन उसकी जिंदगी नर्क सी हो गई। परिवार से बड़ी हिम्मत कर के बात की तब परिवार वाले उसे अपने साथ ले तो गए ,पर अब वो एक जिंदा लाश की तरह रहने लगी।किसी ने उसे न तो ख़ुशी देने की सोची न उसके ओर उसके बच्चे के भविष्य के लिए कुछ किया । विधवा और ऊपर से पेट मे बच्चा कोई अपनाता भी कैसे ।जब परिवार ही नही सोचता तो समाज कैसे सोचेगा ।पहल तो परिवार कोई ही करनी पड़ती है एक गुमसुम जिंदगी को खुशी देने की । विधवा है तो उसमें उसका कोई दोष तो नही।सोच बदलेगा तब तो परिवर्तन आएगा और पहल तो हम सबको मिलकर करनी पड़ेगी ।तभी तो औरत का मान सम्मान बढेगा ।सिर्फ बातों से परिवर्तन नही आएगा ठोस कदम उठाने पड़ेंगे ।।
© speechless words
सुनील एक साधारण से परिवार से था अच्छा खासा कमा लेता था। और बहुत ही गुनी था वो नंदिता को बहुत प्यार करता था और उसकी खुशी के लिए कुछ भी कर सकता था ।
किन्तु नंदिता के परिवार वाले उसे अपना ने के लिए तैयार नही थे। पर नंदिता भी ज़िद पर अड़ी थी और उसने घरवालों को बिना बताए चुपचाप शादी कर ली। वो दूसरे शहर में रहने चली गई और घरवालों ने भी नंदिता से सारे रिश्ते तोड़ लिए।
सब कुछ सही चल रहा था नंदिता भी सुनील के साथ बड़ी खुश थी पर एक रंज रहता था कि काश परिवार वाले भी उसको अपना लेते।साल पर साल बीत रहे थे , और नंदिता अब पेट से थी ,सुनील भी उसकी बड़ी देखभाल करता था। एक दिन जब वो काम से घर लौट रहा था उसका एक्सीडेंट हो गया और वो चल बसा। नंदिता पर तो मानो आसमान टूट पड़ा । वो गुमसुम सी अकेली पूरा दिन बैठी रहती और अपने बच्चे के बारे में सोचती रहती।परिवार से तो पहले से ही कोई नाता न था ।और अब कोई कमाने वाला भी नहीं ,ऐसी हालात में उसे काम पर भी कोई रख ने को तैयार नही थे। और दिन ब दिन उसकी जिंदगी नर्क सी हो गई। परिवार से बड़ी हिम्मत कर के बात की तब परिवार वाले उसे अपने साथ ले तो गए ,पर अब वो एक जिंदा लाश की तरह रहने लगी।किसी ने उसे न तो ख़ुशी देने की सोची न उसके ओर उसके बच्चे के भविष्य के लिए कुछ किया । विधवा और ऊपर से पेट मे बच्चा कोई अपनाता भी कैसे ।जब परिवार ही नही सोचता तो समाज कैसे सोचेगा ।पहल तो परिवार कोई ही करनी पड़ती है एक गुमसुम जिंदगी को खुशी देने की । विधवा है तो उसमें उसका कोई दोष तो नही।सोच बदलेगा तब तो परिवर्तन आएगा और पहल तो हम सबको मिलकर करनी पड़ेगी ।तभी तो औरत का मान सम्मान बढेगा ।सिर्फ बातों से परिवर्तन नही आएगा ठोस कदम उठाने पड़ेंगे ।।
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