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जुड़ शीतल
मुझे अच्छे से याद है उस दिन जुड़ शीतल था और अर्पणा इस त्योहार पे पहली बार अपने घर परिवार से दूर अकेली शहर में थी। उस समय हमलोग अहमदाबाद में रहते थे । अर्पणा मेरे सामने वाले घर में ही रहती थी ।उस दिन वह बहुत दुखी और उदास थी। वैसे तो हमारी कोई खास जान पहचान नहीं थी अर्पणा से पर कभी काल आमने-सामने होने से बातचीत हो जाती थी।
उसे यूं गुमसुम और उदास देख मैंने उससे इसका कारण पूछा..!तब उसने मुझे अपने इस त्योहार के बारे में बताया साथ ही उसका मूल्य भी समझाया।
वैसे हमारे में तो ऐसा कोई त्यौहार नहीं होता है ।
ना ही मैंने पहले कभी इस त्यौहार के बारे में सुना था ।
फिर भी मैं अपने फ्रिज से एक ठंडे बासी पानी का बोतल ले अर्पणा के घर गई और उसके माथे पर तीन बार जल डालकर थपथपाया साथ ही मंत्र भी पढ़ा।
जो गांव में उसकी दादी मां और अड़ोस-पड़ोस की सभी बुजुर्ग स्त्रियां सर पे पानी डालते हुए कहते हैं ।
जुड़ायल रहूं...!!इस पर झट से उसने मेरे चरण छू लिए और दादी कहते हुए मेरे गले से लग गई..!!
किरण