...

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उसकी बातें
वो कविताएँ नहीं लिखती ...हाँ, चाय बना लेती है वो...
कड़क ही पसंद है मुझे, और उसको, मैं..
कहती है, "इलाइची बस दो डालो" ताकि, लगे कि है,
पर ज़रूरत से ज़्यादा महसूस न हो, जैसे, एक रिश्ते में बंदिश!
कहती है, "अदरक एक रिश्ते में भरोसे के समान है" जो ज़्यादा हो जाये, तो कड़वाहट दे जाती है और कम रहे तो किसी काम की नहीं...
चाय की पत्ती को अक्सर वो उन लम्हों के जैसा देखती है,
जिसमें, सर्द हवायें कम,और, गर्म...