...

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उसकी बातें
वो कविताएँ नहीं लिखती ...हाँ, चाय बना लेती है वो...
कड़क ही पसंद है मुझे, और उसको, मैं..
कहती है, "इलाइची बस दो डालो" ताकि, लगे कि है,
पर ज़रूरत से ज़्यादा महसूस न हो, जैसे, एक रिश्ते में बंदिश!
कहती है, "अदरक एक रिश्ते में भरोसे के समान है" जो ज़्यादा हो जाये, तो कड़वाहट दे जाती है और कम रहे तो किसी काम की नहीं...
चाय की पत्ती को अक्सर वो उन लम्हों के जैसा देखती है,
जिसमें, सर्द हवायें कम,और, गर्म सांसें ज़्यादा महसूस होती हैं...
कहती है, "पत्ती कम हो तो वो चाय कैसी?
पर भीतर से हम जानते हैं कि इसका ज़्यादा होना भी कुछ अच्छा नही!"
उसका कहना है, "कि दूध उस उदारता के जैसा है जो एक दूसरे की ख़ामियों को अपने भीतर छुपा भी लेता है,
और बाहर जो दिखता है, उसे दुनिया संतुलन कहती है"...
"मिठास" पसंद है उसे, उसका मानना है, कि चाय की मिठास उस बचपने के समान है,"जो एक रिश्ते की उम्र को बांधे रखती है"....
कहती है, "ऐसा नहीं की फीकी चाय पी नहीं जा सकती,
पर, चीनी की कमी, मानो उस रुआसी रात की याद दिला देती है जो मैं कभी जीना नहीं चाहती...
गर दूध उदारता सिखाता है, तो उसका मानना है कि, पानी संवेदना का एहसास करा जाता है... "कुछ इस तरह की जैसे, चाय तो चाय जैसी सिर्फ दूध में भी दिख ही जाती है, पर, सिर्फ़ पीने वाला जानता है की इसमें कुछ कम है!"....
आंच की गर्माहट से डरते हैं हम अक्सर, पर वो कहती है, "कि ये आंच उस प्यार के समान है, जो अगर न हो, तो दुनिया भर की चीज़ें साथ में मिला के भी क्या कर लोगी तुम?"...
उसका मानना है, की अगर भरोसा एक रिश्ते की नींव है,
तो प्यार वो इंसान है जिसने उस नींव को रखा...
बहुत बड़बोलू है वो...
कहाँ की बातें, कहाँ जोड़ देती है, पर ऐसा नही की वो संवाद की गरिमा को नहीं समझती....
ज़रा चंचल है, पर गहरा है, मिलो कभी उस से तो गौर देकर उसकी बातें सुनना क्योंकि कहानियों में तो जीती है....!!!!