खुद की खुशी.....या खुदकुशी....??
खुदकुशी.........खुद की खुशी??
वो मिली थी मुझे...... खुदकुशी के मात्र चंद घंटों पहले आज भी वह छड़ ठीक उसी प्रकार से याद होता है जैसे मटर की फली छीमियों में शायद बदल रही हो और उसमें धीरे-धीरे पीड़ा और प्रेम का रिसाव हो रहा हो जिसमें कूट-कूट कर प्रेम भरा हो........
ओ कागज का पन्ना भी पंखे की हवा से फड़फड़ा रहा था और उस कमरे का पंखा अफसोस जता रहा था उसने बचपन से...
वो मिली थी मुझे...... खुदकुशी के मात्र चंद घंटों पहले आज भी वह छड़ ठीक उसी प्रकार से याद होता है जैसे मटर की फली छीमियों में शायद बदल रही हो और उसमें धीरे-धीरे पीड़ा और प्रेम का रिसाव हो रहा हो जिसमें कूट-कूट कर प्रेम भरा हो........
ओ कागज का पन्ना भी पंखे की हवा से फड़फड़ा रहा था और उस कमरे का पंखा अफसोस जता रहा था उसने बचपन से...