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ताड़ - तुड़या भंवरा : समापन
ओह ! तो उसका नाम 'जश्न' है ! सार्थक है... ऐसे व्यक्तित्व का नाम और क्या हो सकता है ?... अपनी 'मासुम खुराफातों' से वह पुरे पार्क को जश्न में ही तब्दील कर देता है...

हम लोग बस कुछ दुरी से, पर तहेदिल से उसको पार्क में निहारते रहते थे... इसी उम्मीद में कि एक दिन तो उससे मिलेंगे, उसका नाम जान सकेंगे जिसे हमने 'ताड़ - तुड़या भंवरा' नाम दिया है।

कहते हैं ना कि "आप किसी चीज को अगर दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे मिलाने की कोशिश करती है"... तो इस बार कुछ ऐसा ही हुआ...एक दिन हमेशा की तरह हम पार्क में बैठे हुए ताड़ - तुड़या भंवरा' को कुछ दुर से देख रहे थे...बैंच पर न बैठकर मैं और मेरी पत्नी नीचे भुमि पर ही बैठे थे, माहौल खुशनुमा था,शीतल पवन मानों मन को उल्लासित सी कर रही थी... वह सामने ही खेलने में मग्न था..आज उसके हाथ में एक खिलौना मोटर थी...अचानक वह खैलते- खेलते वह मेरे पास आ गया, उसके पीछे-पीछे एक महिला भी आती दिखी.. ओह! अवश्य ही उसकी मम्मी ही हैं...तब तक वह वहीं मुझसे कुछ दुरी पर बैठ गया, उसकी मम्मी 'जश्न ,जश्न 'कहती हुई उसे बुलाती रही पर वह वहीं बैठा रहा..."यह कुछ देर आप लोगों के साथ खेलकर ही मानेगा" उसकी मम्मी बोली ।
'इसका नाम 'जश्न' है ?' मेरी पत्नी ने सवाल किया..' हां' उसकी मम्मी ने कहा और कुछ ही दुरी पर बैठी अपनी सहेलियों के साथ जाकर बैठ गयीं।

जश्न ने मोटर मेरी ओर ढकेली, मैंने वापस उसकी ओर लौटा दी, कुछ देर तक यह खेल चलता रहा, ज़श्न बीच-बीच में मोटर रोककर, पहियों को एक लकड़ी के टुकड़े से स्पर्श भी करता रहा.. कुछ सोचने के बाद समझ आया कि वह टायर का प्रेशर चेक कर रहा था... मेरी बेटी जो टहल रही थी वह भी वहां आ गई...हम मंत्रमुग्ध हो रहे थे...हमारा नायक जो आज हमें साक्षात मिल गया था। मानो एक मिशन ही पुर्ण हो गया हो।
कुछ देर खेलने के बाद जश्न फिर मोटर उठाकर पार्क की भीड़ में शामिल हो गया ।

अगले दिन हम फिर उसी जगह पर बैठे हुए थे कि देखा ज़श्न हाथ में बैडमिंटन का रैकेट लिए कुछ दुरी पर खेल रहा है... दौड़ते दौड़ते उसकी नजर हम पर गई, रैकेट वही फेंककर वह गया और दौड़कर खिलौना मोटर ले आया और बैठकर मोटर मेरी ओर ढकेल दी और खेल शुरू....

तो यह थी ताड़ - तुड़या भंवरा अर्थात जश्न से मिलने की कहानी। पुरे पार्क को वह अपने आलोक से जश्न में तब्दील कर देता है।

२१.०१.२०२१ ओम साई राम ।
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