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ताड़ - तुड़या भंवरा : समापन
ओह ! तो उसका नाम 'जश्न' है ! सार्थक है... ऐसे व्यक्तित्व का नाम और क्या हो सकता है ?... अपनी 'मासुम खुराफातों' से वह पुरे पार्क को जश्न में ही तब्दील कर देता है...

हम लोग बस कुछ दुरी से, पर तहेदिल से उसको पार्क में निहारते रहते थे... इसी उम्मीद में कि एक दिन तो उससे मिलेंगे, उसका नाम जान सकेंगे जिसे हमने 'ताड़ - तुड़या भंवरा' नाम दिया है।

कहते हैं ना कि "आप किसी चीज को अगर दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे मिलाने की कोशिश करती है"... तो इस बार कुछ ऐसा ही हुआ...एक दिन हमेशा की तरह हम पार्क में बैठे हुए...