नज़र लग जाती है
क्या वाकई में नज़र लग जाती है ? आज इसी विषय पर लिखने को मेरी कलम मुझे उकसाती है। नज़र लगती नहीं लगाई जाती है और वह भी आपकी सोच और आपकी विचारधारा इसे प्रमाणित करते हैं। कोई दूसरा नज़र बाद में लगाता है पहले आप अपनी सोच में इसे शमिल करते हैं। आपने सोचा कि य़ह बात किसी को नहीं बताना या कोई भी काम जब तक ना बन जाए किसी से मत कहना या फ़िर कभी-कभी लोग अपने बच्चों तक को इसमें शामिल कर लेते हैं। बच्चा पढाई में अच्छा ख़ासा है अच्छा रिजल्ट लेकर आता है मगर वह ख़ुद ही अपने बच्चे को दूसरों के सामने य़ह तक कह देते हैं कि ये तो बहुत नालायक है बिल्कुल नहीं पढ़ता सिर्फ़ इसलिए कि कोई नज़र लगा देगा। इस नज़र के डर की वज़ह से सबसे पहले आपने ही उसे एक negative vibration दे दी फ़िर वही बात दस लोग और बोलेंगे उनका बच्चा तो बहुत नालायक है बिल्कुल नहीं पढ़ता तो य़ह vibration अब दस गुना बढ़ गई और universe को message गया कि य़ह बच्चा नालायक है। बस उसका पढ़ाई में अब सच में मन नहीं लगता और आप कहेंगे कि पता नहीं किसकी नज़र लग गई अच्छा भला पढ़ता था। अरे सोचो ज़रा आपने ही बोला था ऐसा अब जब सच में ऐसा हो गया तो दूसरों पर इल्ज़ाम क्यूँ। नज़र कोई नहीं लगा सकता जब तक आप सकारात्मक दृष्टि रखते हैं। आपके अपने ही विचार आपको नज़र लगाते हैं
अब अगर आज के बाद आपसे कोई कहे किसी को मत बताया करो कोई बात लोग नज़र लगा देते हैं तो आपको बस यही बोलना है कि जब तक भगवान की नज़र हम पर है कोई हमें नज़र नहीं लगा सकता। तो इसीलिए नज़र और नज़रिया दोनों रखिये सकारात्मक ना कहिये किसी से ऐसी बात ना सुनिये किसी की बकबक। समझ गये ना आप?नज़र और नज़रिया हमारे ख़ुद के हाथ।
अब अगर आज के बाद आपसे कोई कहे किसी को मत बताया करो कोई बात लोग नज़र लगा देते हैं तो आपको बस यही बोलना है कि जब तक भगवान की नज़र हम पर है कोई हमें नज़र नहीं लगा सकता। तो इसीलिए नज़र और नज़रिया दोनों रखिये सकारात्मक ना कहिये किसी से ऐसी बात ना सुनिये किसी की बकबक। समझ गये ना आप?नज़र और नज़रिया हमारे ख़ुद के हाथ।