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स्थाई है.. तो वो है.. "प्रेम"

बहुत से लोगों का कहना है कि.. इस धरती पर प्रेम खत्म हो रहा है, नफरत बढ़ रहा है पर.. आज अगर हम हैं तो यह प्रमाण है कि धरती पर प्रेम है,और हमारी सोच से कहीं ज्यादा...

"सूरज को धरती से प्रेम है" दूर रहकर भी वह धरती को जीवन दे रहा..."वृक्ष" जो बिना स्वार्थ के मनुष्य को जीवन दे रहे... एक नवजात "शिशु" जो पहली बार अपनी आंखें खोलता है और इस संसार को निहारता है उसके निहारने में प्रेम है...

इन में मिलावट आ गया समझो कुछ भी ना रहा... ना हम रहेंगे ना यह धरती रहेगी.. पर.. ऐसा असंभव है.. क्योंकि 'प्रेम', प्रकृति और पूरे ब्रह्मांड में व्याप्त है.. और कुछ स्वार्थी इंसानों द्वारा पनपी यह नफरत उसके किंचित मात्र भी नहीं..

मनुष्य द्वारा चलाई गई नफरत की आंधी पूरी तरह से अस्थाई और अगर स्थाई है तो वह है "प्रेम"

© अनकहे अल्फाज़...
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