बैसाखी
"बैसाखी" एक ऐसा दिवस जिसे हम हर वर्ष मनाते हैं। पर "बैसाखी" का वास्तविक स्वरूप क्या है,ये हम कभी जानने का प्रयास ही नहीं करते।
तो आइए जानने का प्रयत्न करें।
आपने अकसर देखा होगा जो लोग प्राकृतिक रूप से अक्षम होते हैं अर्थात विक्लांग अथवा अपंग होते,वो उस अपंगता को दूर करने हेतु वो सहारा लेते एक ऐसे साधन का जिसके आधार पर वो चल सकें,और उसे वो "बैसाखी" कहकर सम्बोधित करते हैं।
अर्थात
यहाँ से ये स्पष्ट हो रहा है-
ऐसी परिस्थिति जब कोई साथ नहीं आता,उस समय सहारा देकर हमें चलाने वाली कहलाती है "बैसाखी"।
दूसरे शब्दों में "बैसाखी" शब्द ही अपना प्रमाण दे रहा है:-
*सबके बैरी होने पर भी जो आपकी साख बचाने हेतु,आपकी रक्षा हेतु आपका सखा अथवा सखी बनें वही "बैसाखी" है।*
परंतु आप ये विचार कर रहे होंगेे कि ऐसा किस प्रकार सम्भव है कि जब सब विपरीत हों तो कोई एक साथ हो।
इसके लिए महापुरुषों(संतों) ने कहा:-
*"जाको राखे साइयां मार सके न कोय, बाल न बांका कर सके या जग बैरी होय"*
भावार्थ:-
*जिसका रखवाला स्वयं साँई(सत्य-ईश्वर) हैं उसे कोई मार नहीं सकता। फिर चाहे समस्त ब्रह्मांड ही उसके विरुद्ध क्यों ना हो जाए,तब भी उसका बाल तक बाँका नहीं कर सकता।*
यहाँ विचारने योग्य बात यह है कि एक के बैरी होने पर तो कोई साथ देता नहीं,
तो समस्त सृष्टि के विरुद्ध खड़े होने पर कोई कैसे हमारी रक्षा के लिए तत्पर हो सकता है।
संत कबीर साहब कहते हैं:-
"चलती चाकी देखकर दिया कबीरा रोय,
दो पाटन के बीच में साबुत बचा ना कोय।"
अर्थात
*समय एक चक्की की भाँति है और काल की इस चक्की में एक दिन सब पिस जाएँगे(सबका नाश हो जाएगा)।*
ये विचार कर कबीर साहब रो पड़े।
*पिता का दुःख देखकर उनके पुत्र कमाल ने विवेक द्वारा बहुत ही वैज्ञानिक उपाय प्रस्तुत किया और कहा:-*
*"पिता श्री! निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं,यहाँ मार्ग है काल की चक्की से बचने का।"* और कहा:-
चलती चाकी देखकर दिया कमाल हँसाय।
जो कीली से लागा रहे ताको काल ना खाय।।
भावार्थ-
*"केंद्र में कील है जिस पर चक्की घूम रही है। जो भी गेहूँ चक्की पर गिरेगा वो पिस जाएगा,किंतु जो कील पर चिपक जाएगा वो फिर पिसने में नहीं आएगा।"*
{जो जगत की चकाचौंध को केंद्र मानकर जीएगा वो अंत में अवश्य काल का ग्रास बनेगा
किंतु,
जो समस्त ब्रह्मांड के केंद्र से जुड़ जाएगा उसका काल भी कुछ नहीं कर पाएगा}
*काल के अधीन सारी सृष्टि है और काल ईश्वर के अधीन है। तो जब हम ईश्वर(काल रचयिता) से ही जुड़ गए तो संसार का बैरी होना भी बहुत छोटा है,फिर तो काल स्वयं हमारे नतमस्तक हो जाएगा।*
ये बहुत बड़ा वचन है ईश्वर का। इसे नज़रअंदाज़ ना करें और स्वयं को जानकर उस परम कील से जुड़ने का मार्ग खोज प्रयत्न में लग जाएँ क्योंकि काल तो ताक लगाए बैठा है।
तो इससे पहले काल आपको ग्रासे आप उस परम बैसाख को अपनाकर उससे सम्बन्ध स्थापित कर लीजिए।
जुड़ने का प्रयास अवश्य कीजिएगा।
© beingmayurr
तो आइए जानने का प्रयत्न करें।
आपने अकसर देखा होगा जो लोग प्राकृतिक रूप से अक्षम होते हैं अर्थात विक्लांग अथवा अपंग होते,वो उस अपंगता को दूर करने हेतु वो सहारा लेते एक ऐसे साधन का जिसके आधार पर वो चल सकें,और उसे वो "बैसाखी" कहकर सम्बोधित करते हैं।
अर्थात
यहाँ से ये स्पष्ट हो रहा है-
ऐसी परिस्थिति जब कोई साथ नहीं आता,उस समय सहारा देकर हमें चलाने वाली कहलाती है "बैसाखी"।
दूसरे शब्दों में "बैसाखी" शब्द ही अपना प्रमाण दे रहा है:-
*सबके बैरी होने पर भी जो आपकी साख बचाने हेतु,आपकी रक्षा हेतु आपका सखा अथवा सखी बनें वही "बैसाखी" है।*
परंतु आप ये विचार कर रहे होंगेे कि ऐसा किस प्रकार सम्भव है कि जब सब विपरीत हों तो कोई एक साथ हो।
इसके लिए महापुरुषों(संतों) ने कहा:-
*"जाको राखे साइयां मार सके न कोय, बाल न बांका कर सके या जग बैरी होय"*
भावार्थ:-
*जिसका रखवाला स्वयं साँई(सत्य-ईश्वर) हैं उसे कोई मार नहीं सकता। फिर चाहे समस्त ब्रह्मांड ही उसके विरुद्ध क्यों ना हो जाए,तब भी उसका बाल तक बाँका नहीं कर सकता।*
यहाँ विचारने योग्य बात यह है कि एक के बैरी होने पर तो कोई साथ देता नहीं,
तो समस्त सृष्टि के विरुद्ध खड़े होने पर कोई कैसे हमारी रक्षा के लिए तत्पर हो सकता है।
संत कबीर साहब कहते हैं:-
"चलती चाकी देखकर दिया कबीरा रोय,
दो पाटन के बीच में साबुत बचा ना कोय।"
अर्थात
*समय एक चक्की की भाँति है और काल की इस चक्की में एक दिन सब पिस जाएँगे(सबका नाश हो जाएगा)।*
ये विचार कर कबीर साहब रो पड़े।
*पिता का दुःख देखकर उनके पुत्र कमाल ने विवेक द्वारा बहुत ही वैज्ञानिक उपाय प्रस्तुत किया और कहा:-*
*"पिता श्री! निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं,यहाँ मार्ग है काल की चक्की से बचने का।"* और कहा:-
चलती चाकी देखकर दिया कमाल हँसाय।
जो कीली से लागा रहे ताको काल ना खाय।।
भावार्थ-
*"केंद्र में कील है जिस पर चक्की घूम रही है। जो भी गेहूँ चक्की पर गिरेगा वो पिस जाएगा,किंतु जो कील पर चिपक जाएगा वो फिर पिसने में नहीं आएगा।"*
{जो जगत की चकाचौंध को केंद्र मानकर जीएगा वो अंत में अवश्य काल का ग्रास बनेगा
किंतु,
जो समस्त ब्रह्मांड के केंद्र से जुड़ जाएगा उसका काल भी कुछ नहीं कर पाएगा}
*काल के अधीन सारी सृष्टि है और काल ईश्वर के अधीन है। तो जब हम ईश्वर(काल रचयिता) से ही जुड़ गए तो संसार का बैरी होना भी बहुत छोटा है,फिर तो काल स्वयं हमारे नतमस्तक हो जाएगा।*
ये बहुत बड़ा वचन है ईश्वर का। इसे नज़रअंदाज़ ना करें और स्वयं को जानकर उस परम कील से जुड़ने का मार्ग खोज प्रयत्न में लग जाएँ क्योंकि काल तो ताक लगाए बैठा है।
तो इससे पहले काल आपको ग्रासे आप उस परम बैसाख को अपनाकर उससे सम्बन्ध स्थापित कर लीजिए।
जुड़ने का प्रयास अवश्य कीजिएगा।
© beingmayurr